वो ७५ डिग्री की एंगल लिए लैपटॉप पर काम कर रही है... टांग पे टांग चढा कर बैठी है... बाल शैंपू किये हुए है और शहराना अंदाज़ में खुले हैं... जो दोनों रुखसारों को ढके हुए हैं... साथियों को बस बीच में उनकी नाक ही नज़र आती है... बालों को बीच-बीच में दिलफरेब झटका सा दे देती है... और मेरे पुरुष साथी निढाल हो जाते है...
हाँ-हाँ नीचे से जींस, एक हाथ कटी हुई है... कैपरी कहते है शायद उसको... एक शोर्ट सा कुरता पहना है... कोई उत्तेजित करता सा इत्र लगा रखा है... उसने कभी बासी खाना नहीं खाया है, यह बात उसकी स्किन बोल रही है, पजेरो में बैठा ड्राईवर कुत्ते की तरेह चौकन्नी नींद सो रहा है... और वो लैपटॉप पर काम कर रही है...
वो जब भी किसी की तरफ नज़र उठाती है, आँखों पर का स्क्वायर चश्मा चमक उठता है, ...फर्राटेदार, चमकदार अंग्रजी बोलती है... एक प्रेशर सा बनाती है अपने साथियों पर... सबसे पहले और सबसे ज्यादा बोलती है... वो चाहती है उसके मुंह से कमांड छुटते ही वो काम हो जाये, किसी चीज़ की फरमाइश करते ही उसके नाक पर ठोक दी जाये... वो पशेंसलेस है... वो योजनाएं बनाती है, यू एन में काम करती है,
वो शक्लें देखकर मुस्कुराती है... वो ए. सी. गाड़ियों से नीचे नहीं उतरती... वो स्लम के बच्चों के लिए डिजाईन डोक्युमेंट तैयार करती है... उनके कुपोषण पर चर्चा करती है...उसने गरीबी पर रिसर्च किया है... वो जानती है कितने डॉलर का फलाना प्रोजेक्ट होगा... और उसके लिए फंड कैसे आता है... लम्बे से टेबल पर बिसलेरी की बोतलों के बीच... वो मुद्दों की बात करने वालों को इंग्लिश में डांट देती है... यह डांट घंटे भर चलती है... मुझे अंग्रेजी नहीं आती... वो मानसिक रूप से उसे तोड़ देती है... वो सभी एक ऐसी जमात में शामिल है... जो मानवता के लिए काम करते हैं... और वो लैपटॉप पर काम कर रही है...
वो बेवक्त थैंक्यू, वेलकम और ग्रेट बोलती है... और इस बीच में सॉरी बोल देती है... वो किसी की बात नहीं मानती है फिर भी थैंक्यू बोल देती है... ७५ डिग्री की एंगल लिए लैपटॉप पर काम कर रही है... वो उनके लिए रेडियो प्रोग्राम बनाना चाह रही है... बजट लाखों का है, वो कभी स्लम नहीं गयी... वो कई सेमीनार में कुपोषण की स्पेसिलिस्ट है... दर्ज़नों संस्थाओं में एड्वैज़र है... प्रोग्राम में वो ह्यूमन एंगल नहीं समझती है... हम बच्चों के लिए प्रोग्राम बना रहे है या उनके लिए मैं नहीं समझ पा रहा हूँ... एक गुस्से भरी उमस के साथ मैं उसे देखता हूँ... वो अपनी कातिल हंसी सबके चेहरे पर चस्पा देती है... बड़े साहब कहते है उसकी सेक्स अपील कमाल की है...
वो मानवता की सेवा करती है... शायद डॉलर में कमाती है... सबको नाम से पुकारती है... बड़े युनिवेर्सिटी से पढ़ कर आई है... उसके पास ढेरों आईडियाज़ है... पैसे उगाहने के... मैं सोचता हूँ दुनिया में जब तक यह कुपोषण, एच आई वी, गरीबी है, इनकी दूकान हरी रहेगी... मुझे इतिहास का चरित्र याद आता है " कहीं की राजकुमारी थी उसके मुल्क में आकाल आया हुआ था और वो जनता को केक खाने की सलाह दे रही थी" अभी प्रोग्राम शुरू भी नहीं हुआ है और ७० लाख खर्च हो चुके है... वो अपने लैपटॉप पर बाजरे वाले चार्ट में पीला रंग भर रही है, होठों पर वोही सेक्स अपील है... और मेरे साथी रात के ११ बजे भी नहीं थके...
मुझे कल जल्दी आना है, मैं घर जाने की बात कहता हूँ... वो प्लेट से सेब का एक टुकड़ा मुंह में रख कर चबाते हुए कहती है "यू नो आवर शेड्यूल इज वैरी हेकटिक" आफ़्टर आल वी वर्क फॉर हियुमिनिटी एंड व्हेन यू सर्व.... आगे की अंग्रजी मेरे पल्ले नहीं पड़ती...
Aisee darjano sansthaon se wabasta hun..par aise bhi NGO s ko jantee hun,jo kamal kar guzare hai/kar rahe hain!
ReplyDeletesundar likha hai aapne..par afsos sach aisa hi hota hai.
ReplyDeleteयही वो हकीकत है जो लोगो को सपने दिखाती है
ReplyDeletekitna sach hai ...
ReplyDeleteGreebi ek subject ban gaya hai ameeron ko aur ameer banne k liye ...
bahut acha likha hai! Ekdum vastvikta
ReplyDeleteVery True
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