/सीन-१/ सुनेहरा मौसम/दिन
ब्लैक एंड व्हाइट शेड में आपकी गर्लफ्रेंड फरों वाला ओवरकोट पहने हुए है... गले में स्कार्फ, और घुटनों तक का बूट, उसके हाथ में आपके उधार के पैसों के लिया ऑर्किड का गुलदस्ता है.. क्योंकि उसे पसंद है... वो चार महीने बाद आपसे मिलने स्टेशन पर आ रही है... सिर्फ २० मिनट का वक़्त है, उस ट्रेन के उस स्टेशन विशेष पर रुकने का...
आपने कई रातें जग कर, हर भावना में डूब कर, कभी पहाड़ पर, तो कभी साहिल पर बैठकर, कभी जगती आँखों से कोई सपना देखते हुए उसे हर मूड में कई लव लेटर्स लिक्खे हैं... इसमें से कई मीर के शेर है तो कुछ चुराए हुए दोस्तों के मोबाइल से फॉरवर्ड किया हुआ एस. एम. एस., अगर गर्लफ्रेंड कुछ ज्यादा हाई-टेक है तो आर्चीज़ के दूकान के शाम के रंगीन साये में एक दुसरे पर झुकते कपल्स के धुंधले चेहरे के बैकग्रऔंद में कुछ अंग्रेजी कोटेशन्स, आप चेप देते हैं... क्योंकि आपने तो सिर्फ प्यार किया! ऐसे उच्च ख्याल कहाँ आये आपने दिमाग में?
... हाँ कॉपीराइट आप ज़रूर लेते है, वाजिब भी है अपना पढाई छोड़ कर, अपना काम छोड़ कर, बायोलोजी के प्रैक्टिकल एक्साम के ज्यादा फीस बताकर आपने अपने पिता जी बहुत से पैसे निकलवाए हैं... और उनके लिए चोकलेट्स हर फ्लेवेर्स के लिए हैं...
आपके लिख्खे हुए में कुछ रूमानी ख्याल लिए हुए हैं जिसका जवाब आप उससे इस मूड में इंतज़ार कर रहे हों की वो तकिये को अपने सीने के नीचे लगा कर पांव हवा में लहराते हुए लिख्खेगी... और वो चिट्ठी आपकी वसीयत बन जायेगी... आपने शायद उसे लेमिनेट करवाने का भी सोचा हो...
... और आप यह सब आँखों में आंसू भर कर अपनी प्रेयसी को देते हैं... वो मुस्कुराते हुए ले लेती है... कुछ इस अदा से की उसने एहसान किया और आपका जीवन धन्य हुआ... वो लेकर खुश है और आप उन सहेजे हुए चीजों को मकाम तक पंहुचा कर...
/सीन-२/ सुनेहरा मौसम/दिन/
... शिकायतों का सिलसिला आप शुरू करते हैं, क्योंकि कहने को आपके पास इतने लेटर्स के बाद भी बहुत कुछ है... ''तुम फ़ोन नहीं करती हो, सिर्फ सन्डे को रात में ४ घंटे ही बात करती हो (बिल आपका होता है) मुझे टाइम नहीं देती हो, उस सी. डी. को सुना था जो मैंने खास जगजीत सिंह और सोनू निगम का लिमिटेड कलेक्शन तुम्हारे लिए मंगवाया था ?" ...
... अच्छा अब एम. बी. ए. करने क्या बंगलौर जाओगी ? पहले ही दिल्ली जा कर दूर हो गयी हो.
ट्रेन सिटी मारती है, आपका रुदन और बढ़ जाता है...
आप थोडा बड़े परिपेक्ष्य में देखा शुरू करते है... अच्छा, अपना ख्याल रखना, (आप इस वक़्त उसके परिवार के रिश्तेदार बन जाते हैं... शायद माँ-बाप) इसी बीच आपको ख्याल आता है- अरे ! रोमेंटिक बात करने का टाइम तो मिला ही नहीं. (जाते वक़्त उसे अपना जताना नहीं भूलते... ) कभी मेहदी से अपने हाथों पर मेरा नाम भी लिख लिया करो, इन गुलाबी होठों का ख्याल रखना... अब आप अपना अंतिम दांव मारते हैं... (अपना मेक्सिम्म) "अपना ख्याल रखना यानि मेरा ख्याल रखना... "
और ट्रेन चल पड़ती है... छुक- छुक, छुक - छुक ...
वक़्त आपके दिल में रुक जाता है, आप बहिन के शादी वाले भाई के तरह कर्तव्यनिष्ठ हो जाये हैं.. आपको त्याग, प्रेम से बड़ा लगने लगता है, वो खिड़की से बाहर अपना हाथ निकालती है, आप उसे चूमना चाहते है लेकिन १०० बंधने हैं... लोग देख रहे है से लेकर मर्यादा हनन तक के विचार आते है...
आप दौड़ कर थोडा आगे तक जाते है और अपने शर्ट से चाँदी की पायल निकाल कर उसे थमाते है... वो मुस्कुराती है... आप आँखें बंद कर उसके चहरे को अपने दिल के फ्रेम में बंद कर लेते हैं... वक़्त रुक जाता है...
(शोर्ट फ्रीज़ हो जाता है)
सागर,उम्र में मुझसे आधे हो इसलिए आप की जगह तुम का इस्तेमाल कर रहा हूं। इसे अन्यथा मत लेना। लेकिन तुम्हारी पोस्ट पढ़कर अपने स्कूल का एक दोस्त याद आ गया। महाशय गांव से शहर पढ़ने आए थे। पिता की खेती-बाड़ी अच्छी थी,इसलिेए जनाब को शहर में आते ही हवा लग गई। फिल्म, दोस्ती-यारी के शौक भी लग गए। अब पैसे जल्दी खत्म होने लगे तो पिता को बड़े हक के साथ फोन करते- पिताजी ब्लाटिंग पेपर लेना है पांच सौ रुपये भेज दो(अस्सी के दशक के शुरू की बात है। ये सुनकर हम लोट-पोट हो जाते। करीब छह महीने बाद दोस्त के सीधे-साधे पिताजी को ब्लाटिंग पेपर का राज़ पता चल ही गया। फिर जो धुनाई हुई। पूछो मत।
ReplyDeleteसागर जी इस उम्र में इतना खूबसूरत लेखन...भाई वाह..."खुदा महफूज़ रखे हर बला से...."( बाला से नहीं...) आपकी लेखनी के चमत्कार को देख चकित हूँ...बहुत ही अच्छा लिखते हैं आप...मेरी बधाई स्वीकार करें...
ReplyDeleteनीरज
और हाँ...आप के ब्लॉग की साज सज्जा भी ग़ज़ब की है...बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत पसंद आयी...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
Waah ji bade lajwaab kat lgaye hain aapne to ....lagata hai kafi anubhav raha hai is cheyra ka .....!!
ReplyDeleteसागर तुमसे मिलने की बड़ी इक्छा हो रही हैं ब्लांग पर तुम्हारी प्रतिक्रिया सकुन देता हैं।जिस हलात से तुम अभी गुजर रहे हैं आज से दस वर्ष पूर्व मैं भी उसी हलात से गुजर रहा था।बिहार और बिहारी के बारे में कही भी कुछ भी सूनते या फिर पढते थे तो आग बबूला हो जाया करते थे।दिल्ली में उन दिनों हम बिहारी को लालू के प्रदेश का कह कर चिढाया जाता था।एक वाकया तुमको सुना रहा हूं उस वक्ता में परमानंद कांलनी में रहता था एक दिन सुबह दो सरदारन आपस में लड़ रही थी लड़ाई इतना धमासान था कि नही चाहते हुए भी बाहर निकल कर देखने लगे।लड़ाई शुद्ध पंजाबी भाषा में हो रहा था लेकिन दोनों महिलाओं के भाव से लग रहा था कि मामला गम्भीर हैं।मामला समझने के लिए अपने मकान मालिक से पुछा कि मामला क्या हैं उन्होने जो बताया उससे हसी भी आई और गुस्सा भी।दोनों महिला इसलिए लड़ रही थी कि एक ने दूसरे के बच्चे को बिहारी कह दिया था। कहने का मतलव यह हैं कि लोगो में बिहारी के प्रति कितना गुस्सा था जब कि सभी के मकान में बिहारी किरायादार रहता था और अधिकांश की जिविका बिहार के छात्रों के सहारे ही चल रहा था।शायद अब ऐसी स्थिति दिल्ली की नही होगी यह कहानी इस लिए तुमसे सेंयर किया कि बिहारी होने का वह दंश हम भी झेल चुके हैं जो दंश आज तुम झेल रहे हो ।इसी दंश से अपमानित होकर दिल्ली से वापस बिहार आया और यह सोच कर आया कि बिहार में रह कर बिहारी मानसिकता के खिलाफ लड़ाई लड़ी जाये दस वर्षों के इस लड़ाई में कोई खास उपलब्धि नही हो पायी लेकिन सकून हैं की आज भी उतने ही हौसले से लड़ाई लड़ रहा हूं।अब सवाल नीतीश कुमार के बारे में हैं देख यार नीतीश के आलोचक इसलिए हैं कि लालू गंवर पन में बिहार को उतना नुकसान नही पहुंचा पाया जितना नीतीश पहुंचा रहा हैं।नीतीश वैसे संस्थानों पर वार कर रहा हैं जहां से बिहार का नाम रोशन करने वाला भूर्ण पैंदा होता था।गांव के लोगो से बात करो तमाम स्कूली शिक्षा अयोग्य हाथों में सौंप दिया हैं। आज की खबर हैं मगध विश्वविधालय के कुलपति में वहाली घोटाले का एफ0आईआर0 दर्ज हुआ हैं बहुत बूरी स्थिति हैं भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया हैं बात सामने इसलिए नही आ रही हैं कि लोगो को भय हैं कि लालू आ जायेगा।नीतीश कुमार में नया बिहार बनाने की क्षमता हैं लेकिन पता नही क्यों ईमानदार व्यक्ति होने के बाद भी व्यवस्था में कोई बदलाव नही आ रहा हैं।आज के दौड़ में नीतीश कुमार देश स्तर पर बिहार की छवि बदलने में बड़ी कामयावी हासिल कि हैं लेकिन जिस परिवर्तन की बात मैं सोच रहा हूं हो सकता हैं इसकी जरुरत बिहार से बाहर रहने वाले लोग महसूस नही कर रहे हो।बाढ बिहार के विकास में सबसे बड़ा बाधक हैं लेकिन इसके समाधान को लेकर कोई पहल नीतीश कुमार की और से नही हो रहा हैं।तुम्हे यह जानकर आशचर्य होगा की गंगा सहित सभी नदियों में लबालब पानी भरा हैं और बांध के उस पार पानी के बिना फसल बर्बाद हो रहा हैं।38में 26जिला सूखे के चपेट मैं हैं जिसके समाधान आप के साथ में हैं उसके लिए आप केन्द्र के सामने हाथ फैला रहे हैं देश में सबसे बड़े श्रंम शक्ति के हम मालिक हैं मेट्रो दिल्ली से लेकर मुबई में बन रहे रेल और सड़क मार्ग में बिहारी मजदूरा का खून पसीना लगा हैं आज पंजाव बिहारी मजदूर के बल पर इतना उत्पादन कर रहा हैं।लेकिन उस शक्ति के उपयोग का हमारे कोई सोच नही हैं।प्रतिवर्ष पांच हजार करोड़ बिहार का पैंसा पढाई में दूसरे राज्य जा रहा हैं।इसी रोक ले तो रातो रात बिहार फिर से सोने की चिड़िया बन जायेगा।नीतीश जी के कार्यकाल का चार वर्ष समाप्त होने को हैं एक मेंगावाट बिजली पैंदा करने की क्षमता नही पैंदा कर सका हैं तुम्हे यह जानकर आशर्चय होगा की बिहार 900से 1100मेंगावाट बिजली के सहारे चल रहा हैं ऐसे में कोई उधोगपति क्यों बिहार में आयेगा।बिहार आज पूरे देश में बनने वाले सामग्री का हांब बनकर रह गया हैं।
ReplyDeleteबेहतरीन आलेख है. आनन्द आ गया आपकी लेखनी के प्रवाह को देख कर. लिखते रहें.
ReplyDeletepasand aayee aapkee prem kahane aur aapki style bhee. Aisee matalabee premika ke liye kyun itana wyakul ho ya hai (aapka hero )?
ReplyDeleteAAPKA LEKHAN KA TRIKA AUR PREM KAHAANI ....DONO HI JORDAAR HAIN ..... ALAG SI SHAILI LIYE ....
ReplyDeleteदार्शनिक बिम्ब को पकड़ने की कोमल उत्कंठा में आप पूरी तरह सफल नहीं हुए...परन्तु अमूर्त्यता में भी चिंतन का आकार इस तरह संजोना कठिन कार्य है...बेहतरीन है....लिखते रहिये....
ReplyDeleteNishant kaushik...
prem me payal aaj bhi outdated nahi huyi...or shayad kabhi hogi bhi nahi
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