घर की देहरी पर बच्चा माँ की गोद में घुसा जा रहा था...
दिन भर धूप में खेल कर लाल हो गया है बच्चा. शाम को माँ को देखते ही अचानक प्यार उमड़ पड़ा है बच्चे का. वो जानता है यहाँ शरण मिल गयी तो घर में भी मिल जायेगी और खाना भी मिल जायेगा. आसपास की औरतों से घिरी माँ ने तो दिन भर बहुत कुछ सोच रखा था की घर नहीं घुसने दूंगी, भूखा रखूंगी ... नज़ारा बिलकुल उलट था... माँ महसूस करती है भूखी तो मैं हूँ.
बच्चा माँ के साडी से बार बार उलझ जाता है. वो तो बस कलेजे में घुस जाना चाहता है... अपने पीछे दिन भर की हार-जीत को वो कोसों छोड़ आया है... माँ नाक पे गुस्सा लेकर बैठी अपनी सहेलियों को सुना रही है... सहेलियों को सांत्वना देने के लिए वो बच्चे की हर कोशिश को नाकाम कर रही है... उसका क्रोध पहले चिल्लाने में टूटता है फिर बार-बार अपने हाथ से उसे वो झटक देती है. एकबारगी बच्चे की सूरत में उसे अपना मर्द दिखाई देने लगता है... पर माँ नाम से संबोधन में उसके प्रतिकार का वेग उत्तरोत्तर कम होता जाता है.
बच्चा मर कर पनाह चाहता है... ताकि कल खेलने जा जाना पड़े, वो हार-जीत के बंधन से मुक्त हो जाये... माँ हर बार उसे खेलने के लिए तैयार कर गोद से उतरती रहती है.
सामने गौशाला में शाम की दूध का वक्त हुआ है. बछड़े की रस्सी को खोला गया, वो छलांग लगाता गाय के पास पहुंचा है. ढूध भरे हुए स्तनों में बछड़ा जोर जोर से चोट करता है. बछड़े का समर्पण उस खेलते बच्चे सा है... दोनों माँ चोट बर्दाश्त कर रही है. वात्सल्य आँखों से बह रहा है.
गाय अपने बच्चे को जीभ के चाट रही है इधर माँ अपने बच्चे को प्यार कर रही है.
मेरे दिल में एक ख्याल उमड़ आया है -
कृष्ण के बाद अर्जुन की सारी शक्ति क्षीण हो गयी थी, गीता का ज्ञान निरर्थक हो गया था........
maa kee baathi kuchh aur hoti hai..
ReplyDeleteवात्सल्य रस से सराबोर......
ReplyDeleteलड्डू बोलता है...इंजीनियर के दिल से...
laddoospeaks.blogspot.com
डूबो लिया..बेहतरीन!
ReplyDeleteशायद अंतिम थोट को लेकर ही पूरा खनका खीचा गया है या फिर हो सकता है मैं गलत हूँ.. पर पहली पंक्ति को जितना मारक बनाया गया उतनी मुझे पर्सनली नहीं लगती.. "घुसा जा रहा था" कुछ अटपटा लग रहा है.. मैं जानता हु कि ये बिना वजह नहीं होगा.. पर बार बार घुसना शब्द पढना थोडा ओड़ लगा.. बाकी थोट अच्छा है... डेवलप भी अच्छा किया..
ReplyDeleteसोचालय की प्रोग्रेस तो बढ़िया है..
ये भी बांच लिया। कुश ने बहुत ज्ञान झाड़ दिया! ज्ञानी कहीं का!
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