देखता, देखना चाहता था, थोडा सा अब भी देखना चाहता हूँ और दिखाता भी.
चौड़े पलग पर तुम्हारी सर के हर कोने को खोल कर देखता. सभी नसों की हरकतों को देखता. प्रयोगशाला में तरह-तरह से जांच कर देखता, किसी स्टूडियो में तत्क्षण तुम्हारी प्रतिक्रिया की ऑडियो तरगों का ग्राफ देखता, किसी काठ की कुर्सी पर करेंट लगते जिस्म के काठ हो जाने की हद तक कठुवाए से तुम्हारे चेहरे को देखता और साइकाईट्रिस्ट की तरह नोट करता अपनी मन की डायरी में ... कोई चिप ही लगा कर हर जिस्मो-जां में उठते हर तरंगों को जानने की कोशिश करता... देखता.
देखता कि माथे की नसें कैसी फटती हैं. देखता कि दुर्गापूजा के भव्य पांडाल से कैसे कोई गली गंधाते, बजबजाते पिशाब वाली गली में भी खुलती है.... देखता और एक दफा दिखता भी तुम्हारे वादे के चंद चुनिन्दा शब्दों को... ब्रह्माण्ड से खिंच लाता कहीं टिके ''मैं तुमसे प्यार करती हूँ'' और ''मैं तुम्हें कभी कहीं छोड़ कर नहीं जाउंगी'' जैसे अति साधारण और बेमतलब, बेगैरत जुमले... दिखाता कि यह जुमले शब्द की तर्ज़ पर कैसे खरे हैं और ब्रह्माण्ड के निर्वात में कहीं जस के तस कैसे बेशर्मी से गड़े हैं... जबकि इन्हें भी तुम्हारी तरह मेरी जिंदगी से गुम हो जाने चाहिए थे... लेकिन अगले ही पल उन पर तरस आता है जैसे सातवीं का विद्यार्थी अपनी गलती को महसूस कर चुकने के बाद सर झुकाए डांट खा रहा है. ..... यह दिखाता.
देखता, किसी जादू टोने करने वाले की तरह तुम्हारा माथा छूता, भरम रचता, दर्द ठीक करने वाले की तरह फिर एक और बोझिल रहने वाला सा दर्द दे देता, यकायक छोड़ कर पीछे हट जाता और अपने त्योरियों पर के जुटाए झुर्रियों को इकठ्ठा कर कुटिल मुस्कान से देखता... फिर हँसता, तुम्हारे चेहरे से तुम्हारी जिंदगी कि बस्ती में लगे आग को देखकर अट्टहास करता... उस जलती बस्ती में फूस के घरों को लहकते देखते, हाथ - हाथ भर बड़े टुकड़े को कालिख में लिपा- पुता गिरता देखता... तापता भी ..... फिर यह भी दिखाता.
साबित करने से ठीक पहले किसी ऐन मौके पर बोलना बंद कर देता. इस तरह एक और भार देता. मुक्त कर भी तुम्हें ताउम्र उसी भंवर में जकड़े रखता.
फिर देखता....
..... दिखाता भी.
तुमको, तुम्हारी सहेलियों को, तुम्हारे भाइ-भौजाइयों को, बलवाइयों को
और कसाइयों को.
मन में विचारों की रपटीली धार, बस सरकते जायें, बचने का प्रयास चुटहिल कर देगा।
ReplyDeleteलाजवाब...प्रशंशा के लिए उपयुक्त कद्दावर शब्द कहीं से मिल गए तो दुबारा आता हूँ...अभी मेरी डिक्शनरी के सारे शब्द तो बौने लग रहे हैं...
ReplyDeleteवाह...
मैं आपके लेखन की तरगों का ग्राफ देखता....बस्स!
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