जब किसी दिन हम कुछ अच्छा करते हैं तो थोड़ा और बेहतर करने का दिल करने लगता है। इस दिन होता क्या है कि हम जिम जाते हैं और वापसी में जूस पीते और घर पर अखबार आने और अंग्रेजी में हाथ तंग होने के बावजूद एक अखबार खरीदते आते हैं। थोड़ा सा और पछताते हैं कि काश थोड़ा और पहले उठते तो सुबह का सूर्योदय भी देख लेते कि पिछली बार सूर्योदय ‘शायद‘ (शायद यह बता रहा है कि ठीक ठीक वो समय कब था, यह भी याद नहीं) छठ पूजा के अवसर पर दो साल पहले गांव में देखा था और यहां तो बस पता था कि आज छठ मनाया जा रहा होगा। थोड़ा सा बेहतर और सोचते हैं कि बस अब रूम पर जाकर चाय बना नहा लें फिर घर के पीछे जो मंदिर है वहां शिवलिंग पर जलाभिषेक कर सुबह को उसका सबसे एक्सटेंशन दे मिल जाएगा।
ठीक उसके उलट दो दिन पहले की ही बात है जब सब व्यर्थ लगता था। तब के जवाब आज के लिए फालतू हैं आज के जवाब कल की नज़र में व्यर्थ थे। तब कहते जिम जाने से क्या होता है ? घोड़ा दौड़ता है अठ्ठारह साल जीता है अजगर पड़ा रहता है अस्सी साल जीता है। आज जवाब यूं होता है कि मतलब जीने से नहीं स्वस्थ तरीके की जीवन शैली से है। तब कहते जेब में माल हो नींद पूरी हो बस यही सही है। आज कहते हैं कसरत करने से मस्तिष्क में रक्त संचरण सही होता है, आप दिन भर अच्छा महसूस करते हैं और निर्णय खुले मन से लिए जा सकते हैं। सब काम समय पर करना चाहिए जोकि जंचता है। यह आज का दमदार तर्क है। न्यूज के एंकर की तरह जब वो सामने की टेबल पर दोनों हाथों की उंगलियों को फंसा एक लम्बी सांस लेकर कहता है - और इस वक्त की बड़ी खबर आ रही है फलाने जगह से।
तो सब काम समय पर करना चाहिए। यह अगर कल कहा जाता तो जवाब होता - ए. आर. रहमान अपना काम रात के दो बजे करते हैं। अमिताभ यह काम अमुक वक्त पर करते हैं। कई बार हम अपनी जीवनशैली अपने प्रिय सेलीब्रिटी के करने अनुसार करते हैं। जैसे नहाने वक्त लक्स लगाने पर खुद को प्रियंका चोपड़ा मानना या उसका ख्याल आना, चिलाने ब्रांड की नेल पोलिस लगा लेने पर यह संतोष कि हमने जेनिफर लोपेज वाला नेल पालिस लगाया और अब हमारा हाथ एंजलीना जोली सा दिखने लगा है और 1500 रूपए की एक फटी जींस पहन पेप्सी पीते वक्त रणबीर कपूर का अक्स ज़हन में उभरना, कई बार तो खुद को वही मान लेना। विज्ञापन यहीं सफल है और यही उसका आधार है। खैर...
तो यही सब सोचता हुआ जब मकान की सीढि़यां चढ़ रहा होता हूं तो तवे पर रोटी के सिंकने की महक आती है। किचन हल्का धंुधला है और और एक आदमकद छवि नज़र आती है। यह एक नई नवेली दुल्हन दिखती है जिसकी शादी के महीने भर ही हुए हैं और यहां आए दो दिन। बैचलर के कमरे की साफ सफाई के बाद जब सभी सामान करीने से अपनी जगह पा चुके हैं तो यह सुबह सुबह नहा कर बालों को हेयर पिन से गर्दन से थोड़ा नीचे एक बंधन दे रोटी बेल रही है। पीछे से यह देखना जब हमारे लिए सुखद है तो पति के लिए क्या होगा ? कमरे के बाहर एक अलगनी है जिस पर पहले फस्र्ट फ्लोर के सारे लड़कों के कपड़े बेतरतीबी से फैले होते थे आज वहां तीन नए कपड़ों का ईजाफा हो गया है। पेटीकोट बता रहा है कि अब अमित बाबू सब से कट गए हैं और उन्होंने अपनी नई अलगनी बना ली है। सब कुछ अपना अपना हो गया है। हर चीज़ के रखने सहेजने में एक क्लास आ गया है। बाथरूम में गुलाबी रंग की नई बाल्टी है तो कपड़ों पर सलीके से इस्त्री। जो दो रूपए वाले रिन सर्फ से काम चलता था अब एरियल का बड़ा पैकेट है। सोप केस में भी कई नई चीज़ें हैं जो अवारे बैचलरर्स के लिए खासा दिलचस्पी का सबब है गोया रंग ही रंग बिखरे हैं।
दुल्हन के बालों में चमेली का गजरा है जो हो न हो अमित बाबू पटेल नगर की मुख्य लाल बत्ती से कल दफ्तर से लौटते हुए लिए होंगे आदतन बहस करके छोटी लड़की ने धमकाया होगा दस का दो उन्होंने आंखे तरेरी होगी क्योंकि पति और बच्चा दोनों प्यारे हैं की तर्ज पर खूबसूरत पत्नी और उसकी रेशमी जुल्फों में ये गजरा दे कर उसको और इम्प्रेस करने का तरीका वो छोड़ना नहीं चाहते होंगे। कल शाम ही अमित बाबू ने यह गजरा अपनी पत्नी को दिखा बदले में मुस्कुराट पा कर अपने दिन भर की थकान को हल्का पाया था। रात होते होते उन्होंने एवज में और कीमत वसूल की होगी! कौन जाने ? नहीं, सब जानते हैं यह बात।
अमित बाबू अब पक्के घरेलू हो गए हैं। कभी पौधों की कदर नहीं करने वाले के दरवाज़े पर कसे हुए गेंदे के फूल वाले तीन गमले हैं। अमित बाबू नियमित डेल्टाॅल की शेविंग क्रीम से सेविंग करने लगे हैं अब उन्हें हम जैसों से मांगना नहीं पड़ता। वे आत्मनिर्भर हो गए हैं। अब वे आफ्टर शेव भी लगाते हैं। नाश्ता करके ही दफ्तर निकलते हैं। नहाने के बाद बाथरूम से बाल्टी सहित सभी चीज़ें वापस कमरे में ले आते हैं। देर रात उठ कर पीने का पानी नियमित रूप से भरते हैं। शराब, सिगरेट को हिकारत भरी नज़र से देखते हैं उनकी नज़र में यह चीज़ें उन्होंने कभी देखी ही नहीं थी। हमारे बारे में राय यह कि जैसे लोगों को गोली मार देनी चाहिए। इसपर भी खैर...
कमरे के पर्दे की नोंक उत्तरी धु्रव के दक्षिणी धु्रव तक खिंचा रहता है गोया सांसें तक कमरे में ही जज्ब कर लेना चाहते हों। काले चश्मे के अंदर से झांकती संजीदगी भरे चेहरे से शराफत आजकल यूं टपकती है मानो दुनिया भर की सारी लड़कियां इनकी मां और बहन थी, हमारे सामने भी पत्नी को यूं ट्रीट करते हैं कि एकबारगी लगता है पत्नी नहीं उनकी बहन हो यह और बात है कि ये एक महीने में प्रेगनेंट कर देने का दावा भरते थे और बैंक की तैयारियों की आड़ में देर रात काम क्रिया के सारे आसन सीखने का ज्ञानार्जन करते।
मैं तंज नहीं कस रहा पर मैंने देखा है ऐसे कई अमित बाबू को जो गृहस्थी के नाम पर रंग बदलते हैं। मैंने देखा है ऐसे लोगों को जो छत पर कपड़े सुखाने वाले पिन तक पर भी अपना नाम डाल देते हैं। मैंने देखा है ऐसी कई औरतों को जो सैंया भए कोतवाल अब डर काहे का की तर्ज पर चलती हैं कि वो अपने गोतिनों (पति के भाई की पत्नी) पर दफ्तर से मिली सुविधाओं पर इठलाते कि वो इससे अपने संयुक्त परिवारों की जरूरत पूरा नहीं करती अलबत्ता उन चीजों पर धौंस जरूर दिखाती हैं यह भूलते हुए कि उनके पति को यह नौकरी उसके भाईयों ने अपना करियर खराब करके दिया है, खेत बेचकर दिया है, बहनों ने देर से शादी करके दी है। बहरहाल...
कुछ मीठी चीज़ें देखकर पिछले दो हफ्तों से ख्याल आ रहा है कि मैं भी शादी कर लूं जब थर्ड फ्लोर से नीचे झांकता हूं तो इतने लाल कि भूरे रंग वाली मेंहदी भरे गोरे कोमल हाथ दिखते हैं, कि जब नियमित समयअंतराल पर अपने अंदर जहर भरा हुआ पता हूं तो लगता है कोई पत्नी रूप में पार्वती भी हो जो आलिंगनबद्ध हो मेरे जहर को बांट ले कि कभी कभी जब आसपास आततायीयों से घिर जाऊं और सिर का दर्द सहन न हो तो वो मां के आंचल में तब्दील हो जाए कि सिर्फ लड़ना बेमकसद होता है जब तक कि जीत हमारी होगी तो किसके साथ बांटूगा यह प्रश्न न रहे।
तो थोडा सा और बेहतर सोच रहा हूँ की मैं भी शादी कर लूँ. कुछ ख्याल यह भी है जैसे लाइन मारने के विभिन्न पडाव पर जिक्र करेंगे, खेत से एक शाम मकई के बोझा जब आंगन में पटकेंगे तो माथे का पसीना उनसे आँचल से पोछेंगे और गंगा पार फैले हुए विशाल बालूराशि पर उगे परवल के लतों की जड़ ढूंढेंगे.
SANS UKHAR GAYE......HAANF RAHE HAIN.........LAG
ReplyDeleteRAHA HAI.........KOI BHAGTA HUA INSAN.......APNE
TARANNUM ME SARE JAHAN KA AFSANA BAYAN KAR RAHA HO.........
WAAH SAAGAR BABU WAAH...........
'LEKHNI JAB FURSAT PATI HAI..........TO SABD/SAHITYA KE VAVANDAR UTHTE HAIN....'
''BOOK MARK POST''.....'SHADI' TO KAR HI LOGE......LEKIN THORA AUR RUKO.....AISE FASANE....KUCH AUR LIKHO'
SADAR.
अपनी शादी की बात कहने की तरीका अच्छा है.. वैसे शादी कर ही डालो.. कम से कम दुसरो के घरो में झांकना तो बंद करोगे..
ReplyDeleteपोस्ट निसंदेह उम्दा है.. बीटविन द लाईन्स बहुत कुछ मिलता है
शादी करने में कोई बुराई नहीं...जो नहीं करते वो भी आखिर में दुखी ही पाए गए हैं...
ReplyDeleteनीरज
सागर भाई...पोस्ट तो पूरी तरह दिल से निकल आयी है...मन तो ऐसा कर रहा है की मै भी अपने घर की सीढ़ी चढ जाऊ पर क्या करूं ग्राउंड फ्लोर पे रहता हूँ :) ... रही बात शादी की तो वो तो दूर के ढोल की तरह है जब तक दूर बजे तब तक अच्छा ..अक्सर ढोल की कर्कशता उसके पास ही जाकर सुनाई देती है...वैसे अगर पूरी तरह मन न बना लिया हो तो शादी के फैसले पे पुनःविचार की गुंजाइश रखें ...
ReplyDeleteकुश की बात से सहमत. दूसरों के घरों में झांकना बंद करो बाबू, नहीं तो पिटोगे किसी दिन... सागर कहीं के !
ReplyDeleteजब दिन व्यर्थ होना प्रारम्भ होता है तब सोना ही सबसे सार्थक कार्य लगता है।
ReplyDeleteभला हो अमित बाबू का जिन्हें देखकर आपके मन में शादी की इच्छा जागी है...वैसे ये इच्छा भी कहीं वैसी ही तो नहीं जो विज्ञापनों में रणवीर की फटी जींस या प्रियंका के लक्स साबुन को देखकर जागती है...? वैसे ये बात तो सत्य है की शादी के बाद इंसान कुछ तो बदल ही जाता है..
ReplyDeletegeet ne mann ko fresh ker diya
ReplyDeletebaki to sab theek hai ....lakin ye patel nagar kaha ka hai....
ReplyDeletejai baba banaras....
जी, शौचालय को सोचालय नहीं बनाना चाहिये। बाहर आकर सोचिये, सब ठीक ही होगा।
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