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प्यार में कुछ नया नहीं हुआ, कुछ भी नया नहीं हुआ। एहसास की बात नहीं है, घटनाक्रम की बात है। हुआ क्या ? चला क्या ? वही एक लम्बा सा सिलसिला, तुम मिले, हमने दिल में छुपी प्यारी बातें की जो अपने वालिद से नहीं कर सकते थे, सपने बांटे और जब किसी ठोस फैसले की बात आई तो वही एक कॉमन सी मजबूरी आई। कभी हमारी तरफ से तो कभी तुम्हारी तरफ से।
सच में, और कहानियों की तरह हमारे प्यार की कहानी में भी कुछ नया नहीं घटा। प्यार समाज से पूछ कर नहीं किया था लेकिन शादी उससे पूछ कर करनी होती है। घर में चाहे कैसे भी पाले, रखे जाएं हम उससे मां बाबूजी और खानदान की इज्ज़त नहीं होती मगर शादी किससे की जा रही है उस बात पर इज्ज़त की नाक और बड़ी हो जाती है।
कोई दूर का रिश्तेदार था जो मुझ पर बुरी नज़र रखता था। मैंने शोर मचाया तो खानदान की इज्ज़त पैदा हो गई। और जब अपने हिसाब से जांच परख कर अपना साथी चुना फिर भी इज्ज़त पैदा हो गई। बुरी नज़र रखने वाला खानदान में था इससे इज्ज़त को कोई फर्क नहीं पड़ा लेकिन एक पराए ने भीड़ में अपने बांहों का सुरक्षा घेरा डाला तो परिवार के इज्ज़त रूपी कपास में आग लगने लगी।
और प्यार की तरह हमारा प्यार भी विरोधाभासों से भरा रहा। हम कहते कुछ रहे और करते कुछ रहे। मैं तुम्हारे लिए उपवास पर रही पर फोन पर एसएमएस में हमेशा क्या खाया समय से बताया। तुम समय अंतराल पर ढ़ेर सारी किताबें अपनी माली हालत छुपा कर भेजते रहे। पता नहीं तुम इतनी किताबों के मार्फत कैसे प्रेम से रू-ब-रू करवा रहे थे। मैं रोती रही और तुम्हें हंसने के लिए कहती रही। तुम मेरा कहा मान सुबह की सैर पर जाते और सिगरेट फूंकते घर लौट आते। कितना सुन्दर होता है प्रेम ! सभी एक दूसरे को जानते हुए छलते रहते हैं।
हमारे घर का माहौल कुछ यूं है कि बहुत पढ़ लेने के बाद सिर्फ जांचने की शक्ति बढ़ती है। हमारा घर (पाठक यहां समाज समझ सकते हैं) भी विरोधाभासों से भरा है। बुजुर्ग लोग बहुत पढ़े हैं, भाई बहन भी ऊंची शिक्षा ले रहे हैं लेकिन शिक्षा आज वो है जो व्यवसाय या साख बनाने में काम आती है या फिर ऊंगलियों पर उपलब्धियां गिनवाने में। एक दिलचस्प बात बताती हूं मैंने स्नातक इतिहास विषय से करा और आज मुझे शेरशाह सूरी के शासन काल, अमीर खुसरो किसका दरबारी था यह तक याद नहीं हैं। लेकिन मैं बैचलर हूं, समाज में यह कहने से मुझे कोई नहीं रोक सकता। जबकि ईमानदारी से कहूं तो परीक्षा में यदि मौलिक रूप से मेरी उत्तर कॉपी जांची जाती तो मैं हरगिज़ हरगिज़ पास ना होती। लेकिन, मैं बैचलर हूं। अब हूं तो हूं। और अब इसी विषय से मास्टरी और फिर डॉक्टरी भी करने का सोचा है। हम पढ़ेंगे सागर, अपने लिए, सिर्फ अपने लिए। लार्ड मैकाले ने लकीर खींची हम पीट रहे हैं। मैं शादी करके बच्चे संभालूंगी पर इस क्षेत्र में मेरी पढ़ाई कहीं, कुछ काम नहीं आनी। हां इतना फायदा होगा कि जनगणना में शिक्षितों में मेरी गिनती होगी। सास, ननद से झगड़ने और रौब झाड़ने में मैं फलाने तक पढ़ी हुई हूं यह गिना सकूंगी। इतिहास से इतर मन में जो भी रचनात्मकता होगी, ख्यालों का भंवर होगा वो वहीं दफन करना होगा। परदादाओं ने लकीर खींची और अब हम पीटेंगे।
तुम्हारी किताबों ने बगावत भी सिखायी। कभी कभी तो लगता है किताबें भी विरोधाभास से भरी होती हैं। कोई प्रेम के लिए सब कुछ बलिदान करना सिखाती है, तो कोई गलत के विरोध में खड़े होना। किसके लिए बगावत करूं ? हमारा परिवार (पुन: समाज) यह जानता है कि मैं इन सबसे दूर नहीं जा सकूंगी। जब भी कोई परेशानी होगी तो मजबूरी का ऐसा रोना होगा कि गाज हमारे ही फैसलों पर गिरेगी।
शायद अब तुम ऊपर कहे गए इन सब बातों का मतलब समझ चुके होगे। तो सार यह कि मैं भी मजबूर हो गई और हमारा असंभावित मिलन अपने गंतव्य पर पहुँच गया। तो हमारे तरफ से ना हो गई और मैं वही अन्य लड़कियों की तरह ‘कॉमन मजबूर' हूं। अंत में, घिसी-पिटी बात कहूंगी कि खुश रहना। मुझे माफ कर देना। मुझे भूल जाना। इस वाक्य में अगर कोई क्रांति करूं तो यह कि मुझे कभी माफ मत करना जिससे मैं तुम्हारे मन मस्तिष्क में हमेशा बसी रहूं।
तुम भी कहीं डोलते रहना, मैं भी कहीं बीच मजधार में हिचकोले खाती रहूंगी।
अब नहीं,
तुम्हारी (?)
प्यार का अगला थपेड़ा कहाँ ले जायेगा, नहीं मालूम।
ReplyDeleteगए थे तो मालूम नहीं था कि गए हो, हाँ लौट आये हो ये मालूम हो रहा है.
ReplyDeleteखत से कई सारी बातें याद आ रही हैं...अफ़सोस भी हो रहा है कभी खत क्यों नहीं लिखा. समस्या तो वही है जो अमूमन हमारे तरफ सबकी है...हाँ इस वाक्य में एकदम तुम्हारी छाप स्पष्ट है
'मुझे माफ कर देना। मुझे भूल जाना। इस वाक्य में अगर कोई क्रांति करूं तो यह कि मुझे कभी माफ मत करना जिससे मैं तुम्हारे मन मस्तिष्क में हमेशा बसी रहूं। '
गुलाबो ज्यादा ही नौटंकी नहीं ? :)
ReplyDeletegrammer की mistakes आपके ही जैसी करती है.हिंदी आपने ही तो नहीं सिखाई कहीं?:)
डिम्पल की बात में दम है. सवाल का जवाब दिया जाये!
ReplyDeletekis nashe mai likhi ye post lagta kisi ki aakho ka nasha aap par bhi rang jama gaya
ReplyDeleteसुंदर रचना।
ReplyDeletebahoot khoob
ReplyDeletesadar
@ पूजा,
ReplyDeleteशुक्र मनाईये कि डिम्पल ने यह नहीं लिखा है यह ख़त भी मेरा ही (सागर का) लिखा है :)... रही बची हुई बात तो हैरत होती है इस भागती-दौड़ती शहर में भी ऐसे मासूम कबूतर/मुहब्बत बचे हुए हैं. हो ना हो यह पिछड़े इलाके होंगे वरना प्यार में जान देने वाले लोग आज चुगद हैं और जो जितना रकीब बन कर खड़ा होता है, वही ज्यादा धनी, लोकप्रिय होता है और सम्मान पाता है.
अपने बारे में क्या कहूँ... कूड़े कचरे में तलाशने की आदत है सो ऐसे कई चीजें मिलती रहती हैं. द्वन्द यह भी चलता है कि इसे ब्लॉग पर डालूं या नहीं, किसी के प्यार को यूँ दिखाना उसकी रुसवाई/जगहसाई तो नहीं ? तो मेट्रो स्टेशन पर फैंकने वाले ने इसकी क्या इज्ज़त थी ? कम से कम अपने ब्लॉग पर उसे लगा कर उसे बेहतर जगह दे रहा हूँ.
इश्क गज़ब होता है, कोई हम पर मरता है, हम किसी और पर मर रहे होते हैं. और जिस पर मर रहे होते हैं वो किसी और के लिए आहें भर रहा/रही होती है. कोई हमें लताड़ रहा होता है तो कहीं किसी को हम...
राम गोपाल वर्मा कि फिल्म 'रोड' का एक गाना सटीक है - टाइम-टाइम कि बात है प्यारे, मैं रगडा या तू रगडा...
शुक्रिया.
कितना सुन्दर होता है प्रेम ! सभी एक दूसरे को जानते हुए छलते रहते हैं।
ReplyDeleteतुम भी कहीं डोलते रहना, मैं भी कहीं बीच मजधार में हिचकोले खाती रहूंगी।
ek common si love story mein bhi bahut kuch padhne laayak diya hai tumne!
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteढेर सारी शुभकामनायें.
संजय कुमार
हरियाणा
तुम्हारी किताबों ने बगावत भी सिखायी। कभी कभी तो लगता है किताबें भी विरोधाभास से भरी होती हैं। कोई प्रेम के लिए सब कुछ बलिदान करना सिखाती है
ReplyDelete........सुंदर रचना।
प्यार की तरह हमारा प्यार भी विरोधाभासों से भरा रहा। हम कहते कुछ रहे और करते कुछ रहे। मैं तुम्हारे लिए उपवास पर रही पर फोन पर एसएमएस में हमेशा क्या खाया समय से बताया। तुम समय अंतराल पर ढ़ेर सारी किताबें अपनी माली हालत छुपा कर भेजते रहे। पता नहीं तुम इतनी किताबों के मार्फत कैसे प्रेम से रू-ब-रू करवा रहे थे। मैं रोती रही और तुम्हें हंसने के लिए कहती रही। तुम मेरा कहा मान सुबह की सैर पर जाते और सिगरेट फूंकते घर लौट आते। कितना सुन्दर होता है प्रेम ! सभी एक दूसरे को जानते हुए छलते रहते हैं।
ReplyDeleteछलावों की तहों में ...कितना सुन्दर होता है प्रेम?
क्या प्रेम सच में सुन्दर होता है? अपना अनुभव तो कुछ और ही बताता है..
ReplyDeleteकितना सुन्दर होता है प्रेम ! सभी एक दूसरे को जानते हुए छलते रहते हैं।
ReplyDeleteपल्लवी जी ने सही कहा है..
कोई साला भूलता नहीं है ...ओर मुआफ भी नहीं करता है .ओर दुनिया छह महीने रुक के फिर से चलने लगती है ...दोनों की .अलबत्ता दस -बारह साल बाद ख़त लिखने वाली ज्यादा मिस करने लगती है ....रोमांस भरे पेट को सूट ज्यादा करता है ....
ReplyDeleteदुखांत !!!
ReplyDeleteयहाँ न मिलने का दुःख है....
पर कई बार तो मिल जाने के बाद भ्रम और प्रेम टूटने का दुःख और बड़ा, और असह्य हो जाता है...
Wah, kya baat hai.
ReplyDeleteDiigo, Ifixit & Smashwords