पुराने किले से सदा आती है। हवा उन दीवारों को छूते हुए आती है, किसी घुमावदार सुरंग तो तय करती। हवा इनमें जब भी घुसती या निकलती है मानो को काई अजगर पैठ या निकल रहा हो। बहुत सारा वज़न लिए। मुहाने पर निगरानी करता नीम का पेड़ बारिश का पानी पी कर मदमस्त हो चला है। तने ऐसे सूजे हैं जैसे किसी नींद में एक पुष्ठ छाती वाली औरत लेटी हो जिसके बच्चे ने उसका ब्लाउज सरका दूध मन भर पिया हो।
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पीपल के पत्ते की तरह नज़र आते हैं कुछ लोग। अपनी जगह पर हिलते, हवा के चलने पर सरसराते। हवा कोई खबर लिए पेड़ में घुसती है और तने को पनघट मान सारे पत्ते एक दूसरे से सटकर वो खबर सुनने गुनने लगते हैं। ये बड़े क्षणिक पत्ते हैं। जीते जागते हुए भी एक मरियल हथेली से। अपनी जड़ों से तुरंत उखड़ आने वाले। एक दिखावटी टा टा करता, हिलता कोई हाथ। पलट कर देखो तो ऐसा ही लगे कि किसी अपने की तलाश में पराए घर में आया था। मेहमान होते हुए खुद खर्च किया और जाते वक्त पूरा घर लाज लिहाज के मारे हाथ रूख्स्त कर रहा हो।
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एक दयनीय सी स्थिति यह है कि हमारे चारो ओर दलदल है, पीठ के नीचे कांटे हैं, दिमाग में रेंगता कोई तलाश है और तलवों मे लगती गुदगुदी है। अपने अंधकार में खुद को एडजस्ट करने की कला खोज रहे हैं हम। कभी कुछ पढ़ा है, कभी कुछ देखा है और थोड़ा सा सुख कभी भोगा है। ये मेले में हीलियम की गुब्बारों के लिए तलवे उठाते बच्चों की तरह जिद करते हैं।
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अमीर और गरीब लोगों के बीच एक बड़ा बारीक सा फर्क यह है कि अमीर के घर कोई काम नहीं रूकता। चार महीने की बिना तनख्वाह पाया ट्यूशन मास्टर देखता है कि कैसे दीवारों के बीच नया दीवार सेट किया जाता है। पुरानी टी.वी. के जगह फ्लैट टी.वी. कैसे रिप्लेस होता है। दशहरे पर नए डिजायनदार कपड़े लिए जाते हैं। बड़ा बेटा फोन पर ट्रेवल एजेंट से मुंबई की फ्लाइट की टिकट के लिए बहस करता है। इसके उलट गरीब के घर में एक काम के बदले सारी चीज रोकी जाती है। अगर स्कूल का फीस भरना है तो सुबह का एक पाव दूध रोकना होगा, लकडि़यां ज्यादा चीरनी होगी और रात को बाप का डिक्लोज करना कि आजकल नींद नहीं आती सो कल से काम के बाद चार किलोमीटर पैदल चल लिया जाए तो अच्छी थकान हो जाएगी।
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सफेद, बहुत साफ कमरा। दूधिया ट्यूब लाइट की रोशनी में नहाया हुआ। उज्जवलता दिमाग के किसी कोने में विंड चाइम्स सा बजा रहा है। क्रिसमस के पेड़, बड़े बेमौसम, सुस्ताई पत्तियां नीम बेहोशी में.... फूलझाड़ू के हल्के बुहार की तरह। और कोने में नया लगता कोई जाला जिसकी अभी बस शुरूआत भर ही हो। अगर किसी ने अपने गर्लफ्रेंड को बचपन से बड़े होते देखा हो तो उसके बगलों पर उगता हुआ बाल जैसा... बेहद चिकना, नर्म और मुलायम, हल्के काले-सुनहले बाल, संगमरमर की सफेदी के बीच.... आखिरकार एक लोभ संवरण।
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हथेलियां रगड़ो, कोई तसल्ली दिलाओ मुझे।
(डायरी- अंश)
काम कहीं नहीं रुकते हैं, इच्छायें रुकने लगती हैं।
ReplyDeleteसीलन भरे कमरों में उठा कर लाये धूप के ये टुकड़े हथेलियाँ गर्म कर रहे हैं..कई बार एक सुरसुरी सी दौड़ गयी...बातें स्तब्धता से ही शुरू करके स्तब्धता पे ख़त्म कर देते हो..:)
ReplyDeleteरात के बारह बज के छ मिनट हुये हैं ...एग्जेक्टली! पोस्ट पढ़ी, और अभी-अभी तुम्हें काल किया| शायद सो रहे हो| फोन नहीं उठाने पर सम्मन जारी किया गया है :-0 और दूसरा सम्मन डायरी के ऐसे पन्नो को साझा करने पर|
ReplyDeleteउस दिन कहीं उलझा हुआ था....
साफ़ पानी की सतह पर जिंदगी की विषमताओं को पारदर्शी करते अंश ... निस्तब्ध अन्धेरा, भय और दफ़न उम्मीदें... फिर भी डायरी के पन्ने पलटने को अगुलियां मचलती हैं...
ReplyDeleteपेड़ के ताने का महिला की छाती से कोई लिंक समझ नहीं आया..??
ReplyDelete@ गौतम जी,
ReplyDeleteऔर रात्रि बारह बजकर बीस मिनट पर आपसे बात हुई :)
@ भाई कुश,
पेड़ों के तने बारिश में भीग कर पुष्ट हो जाते हैं, विशेष कर अगर नीम के पेड़ को देखें तो उसकी हर दरार पानी में फूल कर सूजी हुई- सी हो जाती है. ये लिंक वहीँ से लगाया हुआ है.