आओ आबिदा हमारे परेशां दिल को अपनी आवाज़ की प्रत्यंचा पर चढ़ा दूर तक फेंको। मुझे सुर बना कर अपने तरन्नुम में ढ़ाल लो। मेरा अस्तित्व जो कि महज एक छोटा सा पत्थर है आधी ज़मीन गड़ी हुई कि जिससे आने जाने वालों लोगों के लिए एक बाधक बना हर रहगुजर को ठेस लगाता रहता है। आओ आबिदा।
आओ सिर्फ तुम्हारी आवाज़ का सामना करने के लिए मैंने सारी तैयारी कर ली है। आज हमारे और तुम्हारी आवाज़ के बीच मेरे कोई जज्बात नहीं कोई अल्फाज़ नहीं, कोई एहसास नहीं। मैं तो क्या तुम भी नहीं। मगर बस तुम्हारी आवाज़...!
आओ आबिदा। मैंने अपनी ही सिंहासन तोड़ने की तैयारी कर ली है। मुझे आज नदियों, पहाड़ों, खाईयों, फूलों की जलवागर जज़ीरों को याद नहीं करना। मुझे तुम्हारी आवाज़ के मार्फत बस इतना जानना है कि जिन्हें खोने का इल्म मुझे है, जिसे जाने के सदमे को मैंने यह सांत्वना देकर जी लिया कि यादें कभी नहीं मरती, चेहरे अमर हो जाते हैं, वो हमारी दिल में रहेगा, ज़़रा अपनी आवाज़ से वो सब झूठा साबित कर दो, सारे जख्म हरे कर दो, वही दर्द उकेर दो। एक मूर्तिकार की मानिंद अपने रूतबेदार आवाज़ को पलती छेनी बना मेरी गले और छाती से होते हुए दिल पर चलाते हुए अपने गले की सख्त लोच से हथौड़ी बना टांक दो। मगर देखना जब जब उन जागे हुए ज़ख्मों को वापस सिल कर छोड़ना जब अंतिम धागे का टुकड़ा मेरे जिस्म से बड़े प्यार से काटना जैसे मेरी दर्जिन मां रात दो बजे लिए गए आॅर्डर की अंतिम कपड़े को सिलकर तैयार करती है। तब उसके चेहरे पर टारगेट पूरा कर लेने का जो संतोष होता है।
वर्ना तो तुम जानती ही हो आबिदा कि जैसे खाने के बाद दांतों के बीच फंसे चने के छिलके पर जीभ बार-बार जाती है, जैसे सर्दियां शुरू होते ही हाथ की उंगलियों के नाखूनों के पास के पतले चमड़े हल्के से निकलकर खुरचने की इच्छा बलवती करती है। वैसे ही गर आबिदा तुमने थोड़ा सा भी अपनी आवाज़ मेरे जिस्म के बाहर छोड़ा तो मैं उल्टा एक एक रेशा उधेड़ते हुए वापस अपने सारे ज़ख्मों को खोल दूंगा और तुम तो जानती ही हो कि मैं जितना आगे ही सिम्त दौड़ने में जितना दुर्बल हूं उल्टा और पीछे भागने और माज़ी को खोलने कुतरने में उतना ही माहिर हूं। और तब इतनी ही इल्तजा फिर फिर करूंगा।
कहो तो खुद को एक रिकाॅर्ड बना ग्रामोफोन पर चढ़ा दूं। कोई तो आवाज़ आएगी मेरे वजूद से। कुछ तो गा दोगी मेरे अंदर का... खुद को तुम्हारी आवाज़ पर कसे जाने के लिए मैं बेकरार हूं।
शीर्षक : "नाऊ द टीयर्स आर माई वाइन एंड ग्रीफ इज माई ब्रेड/ईच सन्डे इज ग्लूमी ,व्हिच फील्स मी विद डेथ" - हंगेरियन पोएट 'लजेलो झावोर'
ReplyDeleteझावोर के 'ग्लूमी सन्डे' ने दिल टूटने के बाद जो तान छेड़ी, उसके प्रभाव में कईयों ने अपनी जान गंवाई |
http://www.youtube.com/watch?v=_Qaa4GDBr0k&feature=related
पागल कर दो तुम! लिखते हो या कहर ढाते हो?
ReplyDeleteखुशामदीद सागर साहब!
कल्पना नतमस्तक है आपके आगे।
ReplyDeleteआवाज़ की प्रत्यंचा और परेशां दिल और आपकी चाहत .... एक आबिदा मुझे भी चाहिए
ReplyDeleteकलम नहीं स्केनर है जिसमें सोफ्टवेयर डाउनलोड है रूह और दिल में दहकते जज़्बात को वर्ड प्रोसेस करने का...
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