बाबा, मेरी कतई ईच्छा नहीं थी। हम तो
धुंध में गुम रेल की पटरियां देख रहे थे। उस पर काम करते
ग्रुप- डी के गैंगमैन से बातें कर रहे थे। फिर वो बताने लगा कि 'सर ठंड में ना सुबह-सुबह काम पर जाना होता है।' एक ने बताया कि 'मैं बी. ए. पास हूं और डिपार्टमेंटल एक्जाम देकर आगे बढ़ जाऊंगा।
पिछले दिसंबर में ही चार साथी ट्रैक पर कोहरे में काम कर रहे थे, गाड़ी कब उनको काट कर चली गई, पता नहीं चला सर। हम ठीक आधे किलोमीटर दूर पर काम कर रहे थे लेकिन जब सीटी मारने पर कोई जवाब नहीं आया तो जाकर देखा। ... तो चारों आठ टुकड़ों में यहां वहां बिखरे थे।'
अब बताईए हम किसी दृश्य में इतना अंदर तक घुसे हुए थे और वो आई। वो आई और पता नहीं कैसे तो एहसास दिलाया। हम जो कि खुद पापा हुआ करते थे और मेरे बच्चे से दिन रात कोई ना कोई जि़द बांधे रहते थे, तो मैं उसे समझदार आदमी की तरह इस काम से सुनता और उस कान से निकालता रहता था, आज खुद बच्चा बन उसकी जि़द पकड़ कर बैठ गया हूं।
कोई डर है क्या कि जिस बोतल से दूध पीने से मना किया था वही उठा बैठा हूं ?
होठों पर ज़हर लगाकर उसने मुझे चूमा। और मेरे पैरों के अंगूठे तक सुलग उठे। अब मुझे उसके बदन का ताप चाहिए बाबा। अच्छा बाबा एक बात बताओ क्या सचमुच मुझे उसके प्यार से ज्यादा उसके देह से लगाव है ?
बाबा, मेरी तो कतई ईच्छा नहीं थी। हम तो
धुंध में गुम रेल की......... होठों पर ज़हर लगाकर उसने मुझे चूमा....
सांस भर भर कर निकालो मुझसे के जैसे समंदर में डूबते बचाया हो...
ReplyDeleteबहुत दिन हुये सागर...लौट आओ...कहाँ चले गए हो...इस तरह डूबते कौन बचाएगा? सांस भर भर कर?
तुम्हारी लिखी कुछ पंक्तियाँ रिजोनेट करती हैं...मेरे मन की दीवारों से टकरा के लौटती हैं...गुम होती हैं, रास्ता तलाशती हैं...ये पोस्ट भी बहुत दिनों की पसंदीदा है मेरी।
अब कुछ लिखो न...प्लीज।
http://www.youtube.com/watch?v=PYWFv4dqTU0
ReplyDeleteCinema Paradiso Theme music. sab kuch bacha rah jaata hai na.