पूरे तीन बरस से बिस्तर पर सो रही है कविता । उसका नींद में होना यों भी थोड़ा अल्हड़ सा लगता। लटें बेतरतीब होकर यहां वहां फैल गए हैं । एक गुच्छा बायीं पलक में फंसा रहा। सोते सोते कभी कभी उसकी पलकें थरथरातीं, मुझे उसके आंख अब खोल देने का भ्रम होता। कई बार ऐसा भी दिल हुआ कि मैं अपने होंठ उसके चांद जैसे माथे पर रख दूं ताकि प्यार और दुआ का यह एहसास त्वचा उसके मस्तिष्क को संप्रेषित करे। कविता नींद में कितनी सुदंर लगती है। हां, कपड़े ज़रा बहके हुए हो जाते हैं जो कि होना भी चाहिए। तभी अपने शानदार और गरिमामयी व्यक्तित्व एक लापरवाही अंदाज़ में लिपटा नज़र आ आपको खूब आकर्षित करता है। तो कविता जो कि एक बेहद सुंदर देहयष्टि काया वाली लड़की जो मेरे अंदर करीब करीब औरत भी बन चुकने हो है अब इस अंदाज़ से सोई है कि उसके कंधे पर की गाउन की किनारी ज़रा खिसक गई है और उसे ब्रा के स्ट्रेप्स भी उसके बदन पर नींद में ऊंघता सा है।
मैंने उसके सोने की अदा के एक एक फ्रेम को अपनी आंखों में संजोया है। मगर वो गरहोश सोती रही। नींद कितनी भयंकर आई कि जिस करवट लेती फिर बेहोश हो जाती। मैं फिर से पास जाता हूं। मेरी छाया उसको ढंकती है। मैं उसकी सांसों के पास कान लगा कर ज़रा सुनने की कोशिश करता हूं। कुछ फर्र-फर्र की सी आवाज़ आ रही है। खर्राटा नहीं लेकिन एक ज़रा सी खरखराहट। फरवरी की ठंडी सुबह है। धूप में तो गर्मी है लेकिन हवा में ठंडक है। गला ज़रा-ज़रा फंस रहा है कविता का। नाक से सुबकन आती है। हल्की जुकाम जैसी आवाज़ है, लोच भरी। शायद मौसम का असर है। उसे चादर मुंह पर रख कर सोना पसंद नहीं।
मुझे लग रहा है जैसे अब वह जग जाएगी। ऐसा लगता है जैसे उसकी इंद्रियां अब जाग चुकी है और बचपना शेष होने के कारण वो बस अब वो अंठा कर पड़ी हो। बदन में हरकत भी जल्दी जल्दी होने लगी है। बस किसी भी पल अब आंखें खोल देगी, बार्बी डाॅल की तरह। इस ख्याल भर से ही मेरे दिल की धड़कन तेज़ हुई जा रही है कि कैसा होगा वो पल जैसे ही उसकी आंखें खुलेंगी ! जिसे तीन बरस किसी वैज्ञानिक के होते शोध की तरह मैंने सोते देखा, क्या उस एक क्षण में मुझे मारे खुशी के हार्ट अटैक नहीं आ जाएगा? अचानक से मेरा शरीर झूठा पड़ने लगा है। इस वक्त अगर मुझ पर कोई डंडे भी बरसाए तो मुझे कोई अहसास नहीं होगा, हां चोट का इल्म और निशान क्रमशः एक-आध घंटे बाद (तकरीबन) होगी।
कहीं वो उठेगी तो बिस्तर छोड़ने से पहले मेरे गले में दोनों हाथ डाल बिस्तर के उतारने का जिद तो नहीं करेगी ? और अगर उठाया तो मेरे नाक में उसके बालों की एक तीखी प्राकृतिक गंध होगी, जैसे औषधि के जंगल में चेतनायुक्त जुगनू उड़ रहा हो, ऐसी कल्पनामात्र से ही मैं सिहर उठता हूं। थोड़ी और अपनी हदें तोड़ूं तो कविता मेरे ऊपर होगी और उसकी देह से उठती एक मादक मादा गंध मुझे जाने कहां बहा ले जाएगी। मैं उसके साथ शायद रोमांस करना चाहता हूं और करूंगा भी पर उसके होशमंद होने पर, पर यह तय रहा नींद में उसे सिर्फ निहारूंगा, उसके जगने का इंतज़ार करूंगा।
कविता यह सुन कितनी खुश होगी जब तुम यह बताओगे कि कल गिलानी ने कहा कि हमारा देश अब एक और युद्ध नहीं झेल सकता। तो क्या अब पाकिस्तान सचमुच कश्मीर की जिद छोड़ देगा ?
कितना कुछ तो मैंने सोच रखा है उसे बताने को कि इस दौरान क्या कुछ हुआ। ईमान के पक्के मुसलमानों ने पांचों वक्त का नमाज़ रोज़ पढ़ा, सियासतदां ने वक्त की नज़ाकत देख ताज़े वायदे किए, चुनाव को नजदीक आता देख विधानसभा में सामूहिक बलात्कार का वीडियो देखने वाले दोनों मंत्रियों से इस्तीफे भी दिलवाए गए। कविता को यह भी बताऊंगा कि लोग तुमसे अभी भी प्यार तो बहुत करते हैं लेकिन तुम्हारे होने के मकसद को अपना कर चलने से और भी दूर होते जा रहे हैं। शायद यह सुन कविता को अफसोस होगा जब वह जानेगी कि हिन्दी लेखकों की हालत बुरी है और वो सिर्फ छिनाल प्रकरण पर अपनी बेबाक और दिली राय विभिन्न अकादमियों में अपना हित अनहित देख रखते हैं। अन्ना आंदोलन मुंबई में असफल हो गया क्योंकि किसी ने फेसबुक पर यह चेताया कि भाग लेने वाले को जेल हो सकती है और इससे उनके करियर पर असर हो सकता है। सुख सुविधाओं का भोगी युवा, नित अनुभव और ज्ञान से भरता जाता बुद्धिजीवी और मौकापरस्त मीडिया सभी पैकेजबेस्ड दुनिया तैयार कर रहे हैं। इसी तर्ज पर बगावत को हवा देने वाले लेखक जो प्रेरणा हो सकते थे वे भी जयपुर से भाग निकले। कविता यह जानकर कितनी दुखी होगी कि लोग उससे ऊर्जा बस अब योग की तरह ही स्वहित में ले रहे हैं।
पर सागर मियां इन सब के बाद कविता एक प्याली चाय के बाद जब मेरे मंुह से अपनी खूबसूरती की तारीफ सुनेगी तो अपने रूई जैसे उंगलियों से मेरे बाल बिगाड़ कर अपनी आंखों में तैरती शरमाहट लिए यह भी तो कहेगी कि चल अब काम पर चलते हैं।
ओये होये सागर मियां... क्या बात है :) एक तो आपकी कविता ऐसे ही इत्ती ख़ूबसूरत है "बार्बी डॉल" के जैसी.. जैसा कि आपने बताया... और ऊपर से आपके मुँह से तारीफ़ सुनना... ख़ुदा ख़ैर करे !!! देखिये ज़रा संभल के थोड़ी कंजूसी से तारीफ़ कीजियेगा.. कहीं ख़ुद पे गुमाँ ना हो जाये उसे :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना। धन्यवाद।
ReplyDeleteकविता जब अँगड़ाई ले उठे तो उससे पूछियेगा कि उसे इतनी नींद क्यों आती है?
ReplyDeleteरोमांचित शुरुआत के बाद किस तरह कविता ले गई गंभीर विषयों की ओर... अब वो जाग गई है उसकी बहनों को आवाज़ और शब्द देने के लिए फरवरी का मौसम, राजनितिक और सामाजिक परिस्थतियाँ भी अनुकूल है ...
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ReplyDeleteआपके द्वारा यह लाजवाब प्रस्तुति जिसे पढ़ हम सराबोर हुए अब गुलशन-ए-महफ़िल बन आवाम को भी लुभाएगी | आप भी आयें और अपनी पोस्ट को (बृहस्पतिवार, ३० मई, २०१3) को प्रस्तुत होने वाली - मेरी पहली हलचल - की शोभा बढ़ाते देखिये | आपका स्वागत है अपने विचार व्यक्त करने के लिए और अपना स्नेह और आशीर्वाद प्रदान करने के लिए | आइये आप, मैं और हम सब मिलकर नए लिंकस को पढ़ें हलचल मचाएं | आभार
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