ठंड की दुपहरी में क्या भात खा कर बैठी हो
जो शोव्ल में कांपती हो
बच्चे की ज़रा मालिश ही कर दो
या फिर किसी से लड़ ही पड़ो
कुछ तो करो...
चापाकल इतना चलाओ कि लगे
खुद से ही पानी गिरने लगा हो
साफ कपड़ों को ही धो लो फिर से
या फिर काले बाल ही फिर से काले करवा लो
कुछ तो करो...
देहरी पर बैठ कर साफ चावल चुनो
संतोषी माता के कथा में चली जाओ
चलो सुनना नहीं तुम पाठ ही कर देना
आंच तेज़ कर दूध की उबाल फूको
कुछ तो करो...
ना सुनीता,
पेंट मत करो,
पेंट मत करो,
कविता ना लिखो
न ही पढ़ो उपन्यास कोई
न ही पढ़ो उपन्यास कोई
किसी चाहने वाले को फोन कर कहो कि
तुम्हें चूमे यहां वहां
पड़ोसी से वादे लो कि आज रात तुम्हें मिले
कोई गंदी सी फिल्म देख लो
कोई गंदी सी फिल्म देख लो
सुनो, फटे कपड़ों की इस्त्री कर लो सुनीता!
...कुछ तो करो।
साफ क्यों नहीं कहते..!
ReplyDeleteमाई बनो, काम वाली बाई बनो या फिर बनजाओ हरजाई।:)
पेंट,कविता,उपन्यास ख़तरनाक हो सकते हैं
ReplyDeleteबाप रे, सच या मन के भय..
ReplyDeletebaap re khatarnaak kavitaa
ReplyDeleteअभी समझने की कोशिश में हूं...
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