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आपसे मिलकर बहुत ख़ुशी हुई



तुम कहोगे 
तीक है - तीक है 
जबकि तुम्हारे मुंह में 
तारीफ से ज्यादा 
पान की पीक है ----- धूमिल 

मैं जानता हूं, सेकेण्ड फलोर पर वन रूम सेट में रहने वाला मैं, एक  'ऐब - नोर्मल' आदमी के रूप में अपने मुहल्ले में जाना जाता हूं जिसके आवाज़ का उतार चढ़ाव बहुत अधिक है। जो रूमानी बातें बड़े मिसरी जैसे लहजे में कहता है और अपने विरोध का हस्ताक्षर ऊंचे आवाज़ में दर्ज़ करवा कर चुप्पी साध लेता है। पिछले एक साल से मैंने जीने का यह एक नया तरीका ईजाद किया है कि विरोध जता लेने के बाद मैं उस आदमी को दोस्त बना देता हूं जो गलत है। विरोध जता लेने से मेरे मन का बोझ हल्का हो जाता है और मैं अपने आप को सामान्य मनुष्य की श्रेणी में खड़ा पाता हूं। यह मैंने अपना ज़मीर जिंदा रखने के लिए एक रास्ता खोजा है। 

हां यह सच है कि पहले मेरे अंदर विनम्रता नहीं थी लेकिन अब वादा करता हूं जब भी आपसे मुखातिब होऊंगा तो मेरे शरीर का एक हिस्सा हमेशा आगे की ओर अदब से झुकता महसूस होगा। मैं पहले आपके हर चीज़ की तारीफ करूंगा, उक्त दिशा में उठाए जा रहे आपके कदमों का स्वागत करूंगा और अंततः आपके प्रयासों की सराहना करूंगा। साथ ही साथ मैं इन सब बातों को कहने के लिए एक स्वस्थ वातावरण तैयार करूंगा और विनम्रता भरे शब्दों की तलाश तो करूंगा ही। मैं कसम खाता हूं कि मैं अब हर वाक्य कुछ इस तरह से कहने की कोशिश करूंगा - ‘‘महाशय आपका कहना सर्वथा उचित है इस परिस्थिति में सिर्फ यही एक राह उपयुक्त जान पड़ती है। आपकी जगह मैं होता तो भी यही करता"। (गौर करें इसमें शायद शब्द का इस्तेमाल कहीं नहीं होगा) 

अपने मकान मालकिन को मैं यह कदापि न कहूंगा कि पांच गमलों में से सिर्फ तुलसी के गमलों में ही पानी क्यो डाली जाती है? क्या तब भी जब वो ओवर फ्लो हो रहा हो ? बाकी गमलों की हालत दरार फटे बंज़र जमीन जैसी क्यों ? मैं ईश्वर की कसम खा कर कहता हूं कि मैं यह सत्य हरगिज़ नहीं कहूंगा कि अन्य पौधों में ईश्वर के होने की परम्परा (पूर्वाग्रह) नहीं है अतः वे उपेक्षित हैं। हमारे समाज में अधिकांश इंसान डर कर कुछ भले काम कर लेता है। बढ़ती प्रसिद्धि यदि धूमिल होने का खतरा न हो तो लोग आसमान में आग मूतेंगे। यह डर ही है जो कई लोगों से आज पूजा करवा रहा है, अतः कई लोग ईश्वर को भी मिला कर चलते हैं।

पुनः मैं उसे अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद ज्ञापित करूंगा। जिस वक्त मैं उनका यह एहसान जता रहा होऊंगा, मेरी आंखों में उनके लिए अपार स्नेह और प्रेम होगा। किसी की कृतज्ञा जताने के लिए मुख मंडल पर जो लाली लगाई जाती है मैं उसका पूर्णतः अभिनय करना चाहूंगा।

फिर मैं सब कुछ अच्छा अच्छा फील करूंगा और चुनिंदा चीज़ें आपको बताऊंगा ताकि यह सब कुछ इंटरेस्टिंग लगे। वैसे रियल जिंदगी तो बहुत बोरिंग होती है। क्षमा करें मैं फिर सच कहने की हिमाकत कर बैठा। क्या करें जब नहीं था कुछ करने और कहने को तो गली में दो रोटी की गुहार लगाते बच्चे की पुकार में भी एक संगीत खोजना हुआ। जिंदगी का आनंद दोगुना हुआ। भई यों थोड़े ना 'ऐब - नोर्मल'  कहलाता हूं ? 

Comments

  1. सागर जी... आपकी पोस्ट पढ़ने से पहले ही यह टिप्पणी कर रही हूं। फौंट थोड़ा बड़ा रखिए ताकि पढ़ने में आसानी रहे। इससे पहले भी आपकी पोस्ट पढ़ने में यही दिक्कत आई थी। बाकी पोस्ट से गुजरने के बाद...

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  2. जैसे हैं , वैसा रहने नहीं दिया जाता , अपने लायक बनाने का क्रम होता है , वरना ऐब्नौर्मल

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  3. जीवन जीने का मनमौजी तरीका, कोई कुछ भी कहे..

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  4. अंदाज़ अपना अपना......

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  5. धूमिल के तेवर हैं सागर भाई इस आलेख में।
    ..गज़ब!

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  6. ... बड़ी ऐब-नार्मल पोस्ट है प्यारे ये तो, रिजोनेंस एकदम से मिल गयी तो आ पहुंचा इधर...बहुत संतुष्ट सा फील कर रहा हूँ. सागर; आपके सारे लहरों कों तो नही छुया जा सकता , पर कुछेक कों भी छू कर काफी लंबी कूद लग जाती है....उम्दा ऐब-नार्मलपना...!

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