बड़ी अच्छी थी जवानी सागर। अच्छे बनने के चक्कर में खामखां मारे गए और अब देखो खरामा-खरामा हो गया। अरे कम से कम अपना नज़रिया तो था। माना एक संकीर्ण सोच वाले कांटी थे लेकिन दीवार के पक्केपन को गहरे ड्रिल तो करते थे। आज हालत ये है कि अच्छे बनने के फेर में अपने बुराईयों में शहंशाह की पदवी भी खो बैठे। कितने खोखले लगते हो, ओढ़ी हुई विनम्रता, अहिंसा और परिपक्व बुद्धि। तुम भी अमांयार क्या ठीक से बिगड़े नहीं थे जो सुधरने की गलती कर बैठे? अरे मेरी मानो गर्मी और आम दोनों का समय है। लाल मिर्च की बुकनी, कच्ची घानी सरसों तेल, धनिया की गर्दी आदि मिलाओ और अपने अच्छाई को मर्तबान में डाल उसका अचार बना लो। महीने में एक आध बार खा लेना। वैसे तुम्हारे लिए तो यह अचार भी नुकसानदायक है। यह मुहांसे और स्वप्नदोष के कारक और कारण हैं।
चलो बिगड़ते हैं कि कुछ रूहों को वहीं सूकून मिलना है। याद है किसी संपादक ने तुम्हें तुम्हारी औकात बताते हुए कहा था कि तुम्हारे मरने की खबर देर रात के प्रादेशिक बुलेटिनों में भी नहीं होगी। बड़े बड़े नेताओं को तो हम तीन लाइन में निपटाते हैं। आह कितना सुंदर नापा था उसने मुझे। इससे तसल्लीबख्श मौत और क्या हो सकती है!
लो आ गए तेरी गलियों में फिर गर्क होने को हम
मौत तू भूखी इस कदर आ मेरी तरफ
जैसे स्वीमिंग पूल में किसी भावी विश्वविजयी तैराक की बाहें
पानी में डूबती निकलती आती है
आ लील ले मुझको इस कदर
कि तेरी देह की जंगल के इक इक डाल पकड़ झूम लूं मैं
बेहतर बना मैं हर बार मरा मैं
कुचली गई आत्मा मेरी, कई उम्मीदों ने अनचाहा गर्भ दिया।
बुरा बना हूं, सहमति से संभोग हुआ।
मैं जिया, संतुष्ट हुआ।
चल निकाल दे तलवे से कांटा अब बबूल का। हर पग पे चुभन, देख तो कैसा पिलपिला हो गया है!
आखिरी पांच लाइने बहुत जमी !
ReplyDeleteकितने खोखले लगते हो, ओढ़ी हुई विनम्रता, अहिंसा और परिपक्व बुद्धि। तुम भी अमांयार क्या ठीक से बिगड़े नहीं थे जो सुधरने की गलती कर बैठे? अरे मेरी मानो गर्मी और आम दोनों का समय है। लाल मिर्च की बुकनी, कच्ची घानी सरसों तेल, धनिया की गर्दी आदि मिलाओ और अपने अच्छाई को मर्तबान में डाल उसका अचार बना लो। महीने में एक आध बार खा लेना।
ReplyDeleteBEJOD LEKHAN...TAALYAN...TAALIYAN...TAALIYAN...
वफा जिंदगी से करने निकले वो,
ReplyDeleteखुद से दुश्मनी क्या खूब निभाई!
अपने बारे में लिखना कितना कठिन होता है।
ReplyDeleteतुम्हारे मरने की खबर देर रात के प्रादेशिक बुलेटिनों में भी नहीं होगी। बड़े बड़े नेताओं को तो हम तीन लाइन में निपटाते हैं। आह कितना सुंदर नापा था उसने मुझे। इससे तसल्लीबख्श मौत और क्या हो सकती है!
ReplyDeleteaapne jo bhi likhaa hai dil ke kareeb hai ...badhai