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बालिग़ सिर्फ उम्र से ही नहीं हो रहे थे



क्या करूं उम्म... उससे पैसे मांगू या नहीं ?

कपिल से तो ले नहीं सकता। उसकी खुद की हज़ार समस्याएं हैं। गौतम दे सकता है लेकिन देगा नहीं। सुनीती आज देगी तो कल मांगने लगेगी। अविनाश एक सौ देता है तो दो घंटे बाद खुद उसे डेढ़ सौ की जरूरत पड़ जाती है। सौमित्र के पास पान गुटके खाने के लिए तो पैसे जुट जाएंगे लेकिन मेरे मामले में वो लाचार है, जुगाड़ नहीं कर सकेगा। रोहित से कहूंगा कि पैसे चाहिए तो तुरंत नया बैट दिखा देगा कि अभी अभी छाबड़ा स्पोर्टस् से खरीद कर लाया हूं, मेरा बजट तो सोलह सौ का ही था लेकिन इसमें स्ट्रोक है और साथ ही हल्का भी सो पसंद भी यही आया इसके लिए चैबीस सौ का इंतजाम करना पड़ा। सो तुम्हें क्या तो दूंगा उल्टे आठ सौ रूपिया उधार ही लगवा के आया हूं।

घर के रिश्तेदारों में कौन दे सकता है उम्मम... संजन दीदी ! ना उसके अंटी से तो पैसे निकलते ही नहीं हैं। अंजन दीदी मुंह देखते ही अपना रोना रोने लगती है। उसके मन में यही डर बैठा रहता है कि कोई हमको देखते ही पैसे ना मांगना शुरू कर दे सो बेहतर है पहले मैं ही शुरू हो जाऊं। दिनेश भैया को मालूम है कि मुझे पैसे चाहिए सो वो आंख ही नहीं मिला रहे। थोड़ी जरूरत पर भी अब सब आदमीयता छोड़ रहे हैं। पैसे नहीं हैं या इंतजाम नहीं कर सकते तो आंख चुराना कैसा रास्ता है ?

घर में आधे से ज्यादा लोगों को पता है कि मुझे पैसों की सख्त जरूरत है। छोटकी चाची सामने ही नहीं पड़ रही। मुकंद भैया से तो बात नहीं होती फिर भी गिर कर उनसे बोलने... (गला सूखता है) गया तो अनसुना करते हुए आगे बढ़ गए। कहते हैं थाली नहीं लांघना चाहिए लेकिन मेरी बात सुनने से बचने के लिए सामने रखा परोसे हुए थाली तक लांघ के चल दिए।

संध्या मौसी दे सकती है क्या ? ना। सवाले नहीं उठता है। वो तो जले पर नमक छिड़कने लगेगी कि अभी अभी प्रशांत का पेरिस से गोवा तक का फ्लाईट कराना पड़ा। चालीस लग गए। बस इसी पर पलट के पूछ दूंगा कि चालीस हजार हैं आपके पास और साढ़े तीन सौ नहीं है ? तो बात का बतंगड़, मैं मुंहफट हूं, जाने क्या क्या करता रहता हूं, गलत आदत लगा ली है, कोई लड़की पटाई है, आवारगी बढ़ी हुई है, परसों रात आंख लाल देखे थे सिगरेट का चस्का लगा है। अरे नहीं है ये सब शौक पूरा करने का औकात तो आदत भी नहीं डालना चाहिए ना। अब हमसे पूछ कर तो लड़कीबाजी शुरू नहीं किया थे ना नवाब साहब! क्ुल मिला कर जो भी घर में नहीं जान रहा है जान जाएगा। चूहा बिल्ली तक को पता लग जाएगा। दे तो नहीं ही सकती है लेकिन चार आंगन तक बाजा जरूर बजा देगी। फिर चाचा मेरी खाल उतारेंगे सो अलग। ये और बात है कि फिर शाम को मन करेगा तो दो-तीन फिरोजी कलर की साड़ी के लिए भी पैसे निकल आएंगे। 

ऐसा नहीं है कि पैसे कोई दे नहीं सकता या किसी के पास है नहीं। बात यह है कि कोई देना नहीं चाहता। किससे मांगू मदद ? दुनिया साथ में हंस लेती है, बड़ी बड़ी बातें बना लेती है, घनिष्ठ मित्रता का गांठ जोड़ लेती है लेकिन मौका आया तो सब नदारद। जब मेरे पास थे मैंने किसको नहीं दिए थे। अपना बर्थ डे के पैसे भूल कर सन्नी की बहन तक के लिए केक लाया। आज सन्नी अपनी बहन से कहलवा रहा है कि कह देना तीन दिन के लिए सोनवर्षा गया है। डींग हांकने कहो तो पच-पच मधु थूकते हुए कहेगा कि दोस्त तू आधी रात में भी याद करेगा ना तो सबसे पहले खड़े दिखेंगे।

मचान पर का मुखिया दे सकता है लेकिन वो भी पहले यहां वहां छूऐगा। नकद वसूलेने से पहले तक सब जानेगा लौटा दूंगा तो किसी को नहीं बताएगा।

कितनी शर्मिंदगी हुई थी जब परसों शाम ढ़लान पर ट्यूशन सेंटर के सामने खड़े होकर एक बच्चे से पूछा - हमसे पढ़ लोगे, अच्छा पढ़ा देंगे (थूक निकगल कर) वो भी यहां से फीस से आधे पैसे में। गर्वनर का औलाद साला! मुंह देखते हुए निकल गया। क्या दुनिया है जहां फीस ज्यादा है वहां भीड़ है। पढ़ाई भी क्या होती है वहां पर एस एम एस का खेल होता है। बड़े बड़े गुब्बारे फुलाकर गंदे गंदे इशारे करते हैं।

हम ईमानदारी से दोगुना मेहनत करके पढ़ा देंगे तो ये प्रस्ताव नहीं भाया। आजकल होटल का भी यही हाल है लोग लाइन में लग कर महंगी चीज़ खरीदेंगे, उसके लिए टोकन लेकर उत्साहित खड़े रहेगे लेकिन वही चीज़ सामने सस्ते कीमत पर मिलेगी तो पूर्वाग्रह से ग्रस्त की सस्ती है तो घटिया होगी। फिर रोना रोएंगे कि महंगाई हो गई है। हर चीज़ में आग लगी हुई है। कभी कभी तो लगता है जैसे दो लोग मौसम के बहाने बात करते हैं वैसे ही यह भी बातचीत करने का एक बड़ा मौंजू विषय है। लोग परेशान क्या होंगे मजे लेते हैं, क्यों नहीं ये महंगे होटल खत्म हो रहे हैं? उल्टे इनके नए नए ब्रांच दूसरे शहरों में खुल रहे हैं।

किसी को मेरी बात सुनने में दिलचस्पी नहीं हैं। पूरे घर के लोग शक की नज़र से देखते हैं। ज़रा सा सामान मिला नहीं कि चोरी का अंदेशा कर रहे हैं। ठीक है मुझे पैसे चाहिए इसका मतलब यह थोड़े है कि मैं अपने ही घर की चीज़ चुरा लूंगा। साहिल भैया ठीक हैं अपने ही घर में डकैती कर लेते हैं और इनको पता तक नहीं चलता। मैं भी कहूं ये रोज़ शाम को चाय समोसा कैसे मेंटेंन करते हैं ! कभी गेहूं पिसवाने निकले तो आधा किलो आटा बेच दिया कभी एक पाव दूध कम ले लिया। 

बहुत दिन तक ऐसा रहा तो घर छोड़ दूंगा। दुनिया भर के नौंवी पास लड़के काम करते हैं मैं भी कर लूंगा। आखिर कब तक यह व्यवहार बर्दाश्त करूंगा...

... लेकिन पैसे?
 अभी किससे मांगू ... कौन दे सकता है उम्म...

Comments

  1. इसको मनोविज्ञान कहते हैं या मन की परतें उधेडना? इस लड़के ने ये सब कैसे सीखा है...आँखों के सामने खाका खिंचता जाता है...हम भी पैसों की इस जद्दोजहद में उलझते जाते हैं.
    कितना लाजवाब किरदार है कि अपने जैसा लगता है...कितना सच्चा.

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  2. ज़रुरत के आईने में मित्र और सम्बन्धी किस तरह वस्त्रहीन...लजाने के बजाए आँख दिखाते हुए...

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  3. aap jo bhi likhte ho gazab ka likhte ho , sidhe sidhe sab kuch ukar kar tasveer ka roop le leti hai

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  4. Manovigyan ki part dar part udghatit kart post. Badhayi.
    Ye lekh bhi aapko pasand aayenge- Sustainable agriculture in India , Land degradation in India

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