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निरक्षर लिखता है पहला अक्षर



स्याही में जो इत्र की खुशबू घुली है 
उनमें रक्त, पसीने और आंसू के मिश्रण हैं 
जिसने ख़त भेजे हैं
अक्षरों में उनका चेहरा उगता है
उनकी आँखें कच्चे जवान आम की महकती फांके हैं
खटमिट्ठी सी महकती हैं वे आँखें
और तब 
निरक्षर लिखता है पहला अक्षर।
*****

प्रिय ब,

आईने में किसी वस्तु का प्रतिबिंब उतनी ही दूरी पर बनता है जिस दूरी पर वह वस्तु वास्तव में रखी हुई है।

आज दिन भर तुम्हारे मेल्स पढ़े। पढ़े, पढ़े और फिर से पढ़े। पढ़े हुओं को फिर से पढ़ा। पढ़ते पढते तुम्हारी अनामिका और कनिष्ठा उंगली दिखाई देने लगी। दिन भर किसी के इस्तेमाल किए हुए शब्दों के साथ होना वैसा ही लगा जैसे कोई परीक्षार्थी किसी दूर के रिश्तेदार के यहां परीक्षा के दौरान रूकता है और उस दौरान उसके घर के तेल, साबुन, शैम्पू, तौलिये का इस्तेमाल करता है। 

मैं भी जाते नवंबर की गरमाती धूप की तरफ पीठ करके दिन भर तुम्हें पढ़ता और सोचता रहा। और अब ऐसा लग रहा है मैंने तुम्हारे ही कपड़े पहने हैं, ज़रा ज़रा गुमसाया हुआ जिसमें तुम्हारे बदन की गंध घुली है, कुरती के पीठ वाले हिस्से पर तुम्हारे बालों की खूशबू रखी है। बगलों के पास के पसीनों की महक, कपड़ों को जिस तरह तुम बरतती हो, ज्यादा सूखे, थोड़े कच्चे, थोड़ा पाउडर, डियो और परफ्यूम की गंध, थोड़ी सी बारिश में भीगी और जानबूझ कर इतना सुखाना कि हल्का कच्चापन रह जाए। कपड़ों का ऐसे फींचना कि उसमें अपना अंश बचा रह जाए। कि धोते समय ही यह सोचना कि कल को वो इसे पहनेगा।

तुम सोच सकती हो ऐसा कैसा लगा होगा। कायदे से तो मुझे बहुत अच्छा लगना चाहिए, सुकून से भर जाना चाहिए। मानने के लेवल पर तो मुझे भी अच्छा लग रहा है लेकिन अंदर ही अंदर मन एक अजीब से कड़वेपन से भर गया है। हालांकि मैंने लगातार तुम्हें सोचना ज़ारी रखा हुआ है और मैं ऐसा ही करता हुआ बाकी जिंदगी भी गुज़ार देना चाहता हूं। लेकिन मुंह के स्वाद का आलम बिगड़ आया है। ऐसा लगता है जीभ उठा उसके तले एक बार दांत काट कर निंबोली रख ली हो। तीतापन रिस रहा है लेकिन जब इस तीतेपन को लंबे समय में महसूसना शुरू किया तो जीभ के रंध्रों के पास तो कड़वापन रहा पर गाल के दूर के किनारे, टान्सिल और हलक के पास यह हल्का मीठा मीठा लगा। मेरा मन खट्टा हो आया है। होता है न कुछ रिश्ता कसैला! लेकिन हमारी जिंदगी में कुछ इतना अंदर तक घुस जाता है कि कई बार उसका ख्याल हम डर से करते हैं, कई बार एहतियातन और कई बार कर्तव्यवश भी। कई बार कुछ रिश्ते इस तरह के भी हो जाते हैं जो सार्वजनिक रूप से घोषित गलती हैं, निभाए जाने पर पाप, सुने जाने पर अनैतिक और उसके परिणाम भोगे जाने पर न्याय के रूप में दण्ड और जुर्माना भोग लिए जाने पर प्रायश्चित।

फिलहाल मैं अभी भोग जिए जाने वाले निर्णयों के स्तर पर नहीं पहुंचा हूं। 

तुमने ठीक कहा था, हम दूसरी दुनिया के लोग हैं, हमारा हर काम उल्टा होगा। तभी तो जहां लोग सार्वजनिक जीवन से प्यार उठाकर व्यक्तिगत हो जाते हैं हमें अपने प्यार को सार्वजनिक करना पड़ रहा है।

कई बार मैं सोचता हूं कि जिस तरह तुम्हारे लिखे से मेरे जेहन में तुम्हारी सूरत बनती है वैसे ही मेरे लिखे से भी तुम्हारे दिलो दिमाग में भी मेरे अक्स उभरते होंगे। मगर तुम कहां रेशमी शाॅल सी मुलायम भरी फिसलन और मैं कहां उसी शाॅल के नीचे गांठ लगे डोरे जैसा। तुम कहां अरमान भरी खुली हथेली में कांपती ओस की बूंद और मैं बाज़ार की धूल बिठाने के लिए फेंका गया कैसा भी पानी। तुम कहां पोशीदा लिबास में एक भरा पूरा बदन छुपाए जानलेवा औरत और मैं कहां एक जबरदस्ती निर्माणाधीन खंडहर....

तो मन अगर एक आईना है और लिखे जाने में अगर वो एकदम पास प्रतिबिंब हो रही है तो  वास्तव में वह वस्तु कहां रखी है? 

तुम आईने के सामने रखी एक सेब हो जिसके दो होने का भरम होता है जिसके दोनो आकार व गुण सजातीय हैं। फिर भी एक झूठा है मगर इस कदर झूठा कि दोनों सच्चा। इस कदर सच्चा कि दोनों ही कल्पना के बुलबुले। इस कदर प्राप्य कि हकीकतन खाली और इस कदर धनी जो सिर्फ तुम्हें सोचता ही रहा। इस कदर संवेदनशील कि जैसे तलवे में स्पर्श के तरंगन से उभार थरथराते हैं।

तब पीठ में आंच लगने लग जाती है और लगता है पैदा होने को आतुर कोई बच्चा वहां बंधा है। 

तुमसे रिश्ता है या कि लपटों में आने वाला गठ्ठर है?
तुम हो या कि बदन के  चूल्हे में कोई सीला जलावन है!

Comments

  1. राज़ की बातें लिखी और खत खुला रहने दिया

    ReplyDelete
    Replies
    1. http://apnidaflisabkaraag.blogspot.in/2010/05/blog-post_18.html

      Delete
  2. तो मन अगर एक आईना है और लिखे जाने में अगर वो एकदम पास प्रतिबिंब हो रही है तो वास्तव में वह वस्तु कहां रखी है?

    http://www.youtube.com/watch?v=ByQKrPa8AHc

    और भी कई रोज़ उतरता होगा लाल किले की झील पर से चाँद...पानी में जितनी दूर दिखता है उतनी दूर आसमान में भी होता है क्या?

    ReplyDelete

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