मैं झटपट छत पर गया। मचिए पर एक पैर रखकर, कमर पर हाथ रखे आसमान की ओर देखकर अपने तलवे की जड़, फेफड़े की पसलियों, गले की नसों को एकमेक कर जितनी भी हवा खींच कर छोड़ी जा सकती है, सबको समेट कर आसमान में छोड़ दिया। मगर समेटी गई अन्य तमाम चीज़ों की तरह भी वे भी मेरे अंदर से निकल न पाईं। ख्याल आया कि मैं फ्री हो गया मगर यह सिमटा हुआ दिमाग के तहखाने के कोने में किसी जर्मन किचेन के शिल्प जैसा हो गया। अब बस छूने भर की बात थी यह तहदार परत बड़ी ही चिकनाई से खुलने लगती। याद टच स्क्रीन सा सेंसिटिव है। आप बस एक कोंटेक्ट याद करो आपको उससे जुड़ी कई विकल्प बताने लगता है। आप उसे मैसेज भी कर सकते हैं, आप उसके कोंफ्रेंस चैट भी कर सकते हैं, आप अलां घटना को याद कर सकते हैं, आप फलां घटना को कल्पना में फिर से शुरू कर सकते हैं जिसमें पछतावे के बायस अंत अब आपकी मर्जी हो।
मन निर्देशक है या एडीटर? वक्त अगर सबसे बड़ा स्क्रिटराइटर है तो जिंदगी की फिल्म इतनी उबाऊ क्यों है?
कहते हैं समय और प्यार से बड़ा रेज़र कोई नहीं, चलिए एक वीडियो स्पॉट बनाते हैं जिसमें दिखाया जाए कि वक्त कितना भी गुज़र जाए प्यार के याद की क्लीन शेव नहीं हो पाती। यह यह कोई अपानवायु त्यागने जैसा नहीं है जो किए जाने के बाद मुक्त अनुभव किया जाने लगे।
मचिए पर इस तरह एक पैर रखकर और कमर पर हाथ रखे फिलहाल तो इतना ही कहा जा सकता कि मैं अपनी परेशानियों के दलदल में डूबा आत्मविश्वास से लैस हूं। यहां समाधान नहीं दिखता मगर एक लांग शॉट लिया जाए तो अदृश्य समस्याओं में एक हीरो सा खड़ा हूं। इन तीन सौ चौतीस शब्दों की एक तस्वीर लांग शॉट में शाम के सात बजे में, हल्की पीली रोशनी में रेलवे ट्रैक से रिप्लेस की जा सकती है जो अपने पिटे हुए पथ पर चलते हुए भी अरबों नज़ारे और भकटनों को ढ़ोती है।
मन निर्देशक है या एडीटर? वक्त अगर सबसे बड़ा स्क्रिटराइटर है तो जिंदगी की फिल्म इतनी उबाऊ क्यों है?
कहते हैं समय और प्यार से बड़ा रेज़र कोई नहीं, चलिए एक वीडियो स्पॉट बनाते हैं जिसमें दिखाया जाए कि वक्त कितना भी गुज़र जाए प्यार के याद की क्लीन शेव नहीं हो पाती। यह यह कोई अपानवायु त्यागने जैसा नहीं है जो किए जाने के बाद मुक्त अनुभव किया जाने लगे।
मचिए पर इस तरह एक पैर रखकर और कमर पर हाथ रखे फिलहाल तो इतना ही कहा जा सकता कि मैं अपनी परेशानियों के दलदल में डूबा आत्मविश्वास से लैस हूं। यहां समाधान नहीं दिखता मगर एक लांग शॉट लिया जाए तो अदृश्य समस्याओं में एक हीरो सा खड़ा हूं। इन तीन सौ चौतीस शब्दों की एक तस्वीर लांग शॉट में शाम के सात बजे में, हल्की पीली रोशनी में रेलवे ट्रैक से रिप्लेस की जा सकती है जो अपने पिटे हुए पथ पर चलते हुए भी अरबों नज़ारे और भकटनों को ढ़ोती है।
मन पूर्ण मनोरंजन है, गम्भीरता से मत लीजिये, धोखा खा जायेंगे।
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