एक दिन की तीन मनोदशा
सुबह 9:40
जन्म हुए कई घंटे हो चुके हैं। अभी खून से लथपथ हूं। मां की नाभि से लगी नाल अब जाकर कटी है। खुद को आज़ाद महसूस कर रहा हूं। मां के साथ शरीर का बंधन छूट गया। अब यहां से जो सफर होगा उसमें अगर सबकुछ ठीक रहा तो मां के साथ बस मन से जुड़ा रहूंगा। किकियाना चाहता हूं पर लगता है मां ने मुझे शायद तेज़ ट्रैफिक वाले शहर में पैदा किया है। गाडि़यों के इतने हॉर्न हैं, क्या अलार्म है!
दोपहर 12:30 बजे
जिंदगी में आपका पैदा होना ही फेड इन है। और मर जाना फेड आऊट। इसी बीच आपके जीवन का नाटक है। गौर से सुनो और अपनी आपकी दुखती रग पर हाथ रखो सारे सारंगिए एक साथ अपना साज बजाने लगते हैं। रूमानी पल का ख्याल करते ही जिस्म से सेक्सोफोन बजाने वाला निकलता है। बेवफा को गैर की पहलू में देखो तो पियानो बजता है। यार को याद करने बैठो तो एक उदास वायलिन।
पैदा होना प्री प्रोडक्शन है। किशोरावस्था लोकेशन रेकी है, जवानी शूटिंग और अधेड़ावस्था पोस्ट प्रोडक्शन। आदमी सिनेमा है।
शाम 7:00 बजे
पिता: कित्ता कमाते हो जो इतना शेखी है?
मैं: 15 हज़ार
पिता: और खर्चा ?
मैं: सात हज़ार रूम रेंट, तीन हज़ार खाना, डेढ़ हज़ार फोन, हज़ार रूपिया सिनेमा सर्कस, हज़ार का दारू बीड़ी, पान, सिगरेट। पांच सौ टका का बाकी लफड़ा।
पिता: कितना बचा ?
मैं: एक हज़ार !
(पिता के माथे की शिकन ऊंची होती है, चेहरे को मेरे कान के पास लाते हैं, गला खंखारते हैं)
पिता: आंय?
मैं: जी.... एक... (उनके एकदम सामने पड़ रहे गाल को कोहनी से ढ़कते हुए) एक हज़....हज़ार.....
पिता: कितना ? अरे हम बूढ़े हो गए हैं, अब ऊंचा सुनते हैं..... ज़ोर से बोलो न
मैं: (डर मिले थोड़े बुलंद आवाज़ में) एक हज़ार।
दुख है कि पिताजी हाथ पैर से कम बातों से ज्यादा मारते रहे। इसकी ठीक वाइस वरसा मां है जो बातों से कम और..........
पिता: एक्के हज़ार ना ?
मैं: हां।
पिता: तो यहीं आंख के सामने रहकर एक हज़ार रूपया कमाना क्या बुरा है!
(जब तक पिता के कहने का मतलब समझते हैं अमिताभ बच्चन के तरह कमर पर हाथ रखकर एंग्री यंग मैन बन फिल्मी अंदाज़ में कहती है)
मां: अपना पेट तो कुत्ता भी पालता है, तू भी अपना ही पाल रहा है। फिर तेरे और उसमें फर्क क्या रहा?
(शॉट फ्रीज़ हो जाता है)
(क्रेडिट उभरता है)
जिन्दगी के ७ बजते बजते बज जाती है..
ReplyDeleteहम्म... आदमी सिनेमा है !!!
ReplyDelete