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Gmail, Draft No. 134, 8/26/11


"ये रामधुन करने बैठे लोग तो ऐसे चिल्ला रहे हैं जैसे आज ही क़यामत आ रही हो, मन में भी प्रेम भरे नाटक नहीं चलने देते. इत्ता चिल्ला रहे हैं कि अन्दर भी कहानी बनने देना इनको मंजूर नहीं... मन तो इतना हिंसक हो उठता है कि आड़ी लेकर खाई में उतर कर सारे जंगल काट दूँ. वो सब शक्लें क्यों नहीं कटती जिनका काँटा नागफनी की तरह बढ़ता जाता है. मान-मर्यादा कोई अशर्फी होता तो कब का उतार कर दे देती"

अबकी माँ बीच में टोकती है - रे सुग्गा ! क्या-क्या बोलती रहती है ? क्या हुआ है रे तुमको ?

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लड़की हाथ काटती है, लड़की प्रेम में रहते हुए भी प्रेस करते वक़्त कपडे नहीं जलती, किचेन में भुजिया नहीं जलता. दुपट्टा संभालना जिसका एक मुख्य सामजिक आदेश है जो अब अनिवार्य शारीरिक क्रिया में बदल गयी है (जैसे ब्रश करते हैं) लड़के को शिकायत - हमारे जैसा प्यार नहीं है.. घर से निकल गया, नशे में डूबा रहता हूँ, हाथ वो भी काटता हूँ, लव लेटर लिखता हूँ. दौड़ते दौड़ते बस पकड़ता हूँ, मुंह के बल गिरता हूँ. किडनी फेल हो गया लगता है. एक सफेदपोश प्रेम, एक काले कारनामों से भरा प्रेम " दिल का क्या रंग करूँ खून-ए-जिगर होने तक"

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"जिस तरह मैं काम करने के दौरान चैट बॉक्स में तुम्हें पिन मारता रहता हूँ और तुम्हें लगता है उम्र के बड़े बूढ़े से मोड़ पर आरामकुर्सी पर बैठे हुए मै पीछे आ कर तुम्हारे गले में बाहें डाल देता हूँ. कम से कम इतनी तो दुआ करना ही की ये तंग करना बना रहे." 

डी टी सी. में पांच रुपये का टिकट कटाकर अपने बाएं हाथ की मध्यमा ऊँगली की अंगूठी में टिकट को तीन बार पतले पतले मोड़ कर डाली हुए लड़की के ज़हन में ये बात गूँज रही है. यों खड़े होकर सफ़र करना भी बुरा नहीं बस ज़रा बस आज सड़क पर पानी बहुत उड़ा रही है और शीशों पर बूँदें इस तरह से रुकी है जैसे चश्में के पीछे भीगी आँखें.
बाबू कित्ते दुःख !!!!

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चार बरस हुए सुलेमान को रामसरन को बीवी को सरेराह छेड़े हुए. जो मतला था वो ये थी :

"यूँ कानों कान गुल ने न जाना चमन में आह
सर लो पटक के हम सरे बाज़ार मर गए".

और सुलेमान को लगा उसने एकतरफा मुहब्बत के किला फ़तेह कर लिया. मीर की शायरी को अपना महबूब मानने वाले को ये पता था की रामसरन की बीवी अपने नाम से नहीं रामसरन की बीवी से जानी जाती है. गोया सुलेमान ने भी मुहब्बत इसी नाम के साथ की. एक सारी उम्र जब एकतरफा सिलसिला चलता रहा तो....

... तो आम के मौसम में जब सुलेमान मियाँ गुस्से में मचान पर बैठे थे तो बेल का शरबत देते हुए रामसरन कि बीवी ने कहा : 
"तुमने जो अपने दिल से भुलाया हमें तो क्या,
अपने तईं तो दिल से हमारे भुलाइये"

सुलेमान ने सोचा नहीं था कि जिंदगी और मुहब्बत की इस ग़ज़ल की आखिरी शेर रामसरन की बीवी को ही कहनी है.

*****
 
... और गिफ्ट वाले दूकान के गलियारे में लड़के ने लड़की का हाथ पकड़ लिया. लड़की के कान के झुमके हिलने लगे. इसके लिए लड़की हरगिज़ तैयार ना थी. लड़की गिफ्ट के बीच सपनीले संसार के बीच उस अकेलेपन को जीना चाहती थी. लड़का अकेला पा कर उसे चूमना चाहता था. लड़की सबके बीच जीना चाहती थी. लड़का भीड़ में उस पर मरना चाहता था....

...और एक दिन सचमुच उसने उसके गोरे बदन पर ऊँगली से अपना नाम लिख दिया. उसने गौर किया कि अब लड़की जब तब उसके गले लग जाती है, मैं सिर्फ उसके सामने खड़ा होता हूँ तो खुमारी से नहा कर मेरे होंठ के तरफ बढ़ने लगती है. ऐसा पहले नहीं था लड़का भरसक जतन करता और ऐन वक्त लड़की किसी बहाने, किसी अदा या फिर शरमाते हुए निकल लेती. एक निष्कर्ष निकला लड़की देर से आती है लेकिन जब आती है सबकुछ छोड़ कर आती है. दोनों अब भीड़ में मरने लगे हैं. आप कहीं उन पर पैर तो नहीं रख रहे ?

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(1948 में एक बार मंटो मिला तो उससे कुछ यूँ बातचीत हुई)

इस एस्बेस्टस वाले छत पर बारिश बड़ी जोर से होती है. बाज़ औकात गरज कर बरसती है तो लगता है छप्पर तोड़ डालेगी. और फिर सूप भर भर पानी आँगन में गिरता है. उधर गेहूं उठाना है, इधर से कपडे उठाने हैं. हाय अल्ला अब तो दरी भी भीगने लगी है. बंगले अच्छे हैं एक मंजिल पर पानी आये तो दूसरे पर चले जाओ क्यों मंटो ? अब हमलोग कहाँ जाएँ ?

मंटो : चुनांचे लोग मांस जरूर खायेंगे पर ठंढे गोश्त 'पहले' धोये जाने का रिवाज है.

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बहुत बारिश होने से हुआ क्या है कि त्रिमूर्ति भवन के अन्दर जवाहर लाइब्रेरी में एक पुराने से छोटे किले की गुमसाई सी दीवार में सीलन लगने से पर कुछ लड़के और लड़कियों  के नाम उभर आये हैं. दिल्ली सरकार इन दिनों लोगों को जागरूक कर रही है कि किलों, मीनारों पेड़ों पर अपने नाम ना लिखें. लड़की को एतराज़ है कहती है सरकार खुद जनता के पैसे से चार करोड़ का बजट पास कर अस्सी हज़ार में एक थर्ड क्लास ईंट से सड़क बनवाती है और उस पर काले वाले टाईल्स पे सुनहरे अक्षरों में अपना नाम लिख कर एहसान बताती है राजू क्या हम इतने गए गुज़रे प्रेमी हैं जो एक गुमशुदा सी दीवार पर अपना नाम नही लिख सकते ? मैं तो कहती हूँ सरकार हम पे बुलडोज़र चलवा कर इंडिया गेट पर हमारा नाम लिख दे.

लड़का अवाक है जानता है कि वो, लड़की और प्रेम तीनो एक दुसरे से ही जुदा होने वाले हैं इसलिए लड़की रोष में है.

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लड़की मोबाईल का कीपैड कम दबाना चाह थी. 

लेकिन इस समय तक तो लड़के का फोन आ जाता था. मन मार कर उसने कीपैड फिर से दबाया..ह्म्म्म 7:45 हो गए. 8 सेकेण्ड बाद मोबाईल फिर अँधेरे में डूब गया. ओह शीट ! मैंने अपनी बैट्री नहीं चेक की. मोबाईल का कीपैड एक बार और दबाया गया. ऊपर के कोने वाली खिड़की में दो डंडे खड़े थे. शायद आज की बात तो इतने में हो जायेगी. मोबाईल फिर अँधेरे में.... 8 :10 हो गए होंगे.. मेरा नेटवर्क तो आ रहा है ना ? ऐसा तो नहीं की वो मिला रहा हो और मैं ही गायब मिल रही होऊं... की- पैड एक बार दबा... बायीं तरफ सारे डंडे खड़े मिले... 8 :20 हो गए तो आखिर उसने दोनों हाथ बस के बाहर निकाल दिए. इंतज़ार के मेहदी अब लड़की के गले से निकल फिजा में घुलने लगी.

कितना कुछ संभालना पड़ता है.. लड़के की मजबूरी, हकीकत का एहसास और अपने अन्दर का मासूम प्रेम. बात ना हो सकने की खीझ.. कोमल शिकायत और सिसकी भरे रूह!

लड़की ने सोचा अगर अभी ताज़ा मेहदी लगे होती तो अभी के अभी इसी बारिश में धो भी देती.

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मेट्रो में लड़का-लड़की बैठे हुए हैं. लड़का अपना स्लैम बुक लड़की को दिखा रहा है- Friends are forever हर पेज पर ऊपर बड़े इस्टाइल में लिखा है -
पहला पन्ना लड़के ने खुद ही भरा था. लड़की स्लैम बुक के मार्फ़त लड़के को और जानने का प्रयास कर रही थी. कोचिंग जाने के क्रम में संगीत और फिल्मों के अलावा व्यक्तिगत पसंद का पता नहीं चलता... पसंदीदा दृश्य वाले खाके में लड़की ने पढ़ा - मेहँदी भरे हाथों को देखना. लड़की ने झट अपने दोनों हाथ आगे किये. राखी पर लगायी गर्यी मेहँदी चमक उठी. लड़की को अपना हाथ ज्यादा सुर्ख दिखने लगा है. लागी चेहरे पर पढ़ी तो और भी लाग हो गयी. हिंदी का एक दोहा याद आने लगा - 'लागी मेरे लाल की, जित देखूं तित लाल, लागी देखन मैं चली, मैं भी हो गयी लाल'
सपने परखनली में विविध रासायनिक पदार्थों से मिल कर नए नए रिजल्ट देने लगे. खोज प्रेम की हुई लेकिन अवशेष दुःख, दर्द, अवसाद, विरह, तड़प का भी आया.

कि जैसे एक्सपायरी डेट निकल जाने के बाद ब्रेड के साथ खट्टे छोले खाते हैं प्रेम का स्वाद ही ताउम्र बचा रह गया.

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घुटने से बड़े हाफ पैंट में ठुमकता हुआ बबलू जब स्कूल जाता है तो आंवले के पेड़ के पास अक्सर रुक जाता है. दो दिन पहले ही भैया ने इस पेड़ से कैसा टनाका, खट्टा-मीठा कच्चा आंवला खिलाया था. वो उछलता है पर पेड़ तक नहीं पहुँच पाता उलटे जाले में फंस कर गिर जाता है. फंसा हुआ है वो, गले में स्कूल के आई कार्ड से, गर्दन में लटका थर्मस, हाफ पैंट ज्यादा लम्बा डग भरने से रोकता है. अपने भार से ज्यादा लम्बा और भरी बस्ता. अतिरिक्त प्यार से दबा और ओढ़ी हुई उम्मीदें... पैर ज़मीन पर ऐसे पड़ते हैं जैसे रेल की पटरियों पर चल रहा हो. करने को सब कर रहे हैं पर बस कर रहे हैं.

जिंदगी भी तो बबलू ही है ना बाबू ! नय रे ! कुछ गलत कहे ?

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...अ एक बात और देख दोस कि जो होता है वो छठ पूजा के लिए जो गंगा किनारे दौरा (टोकरी, डाला) रख के छेकते हैं ना आजकल लड़कियों का वही हाल है. सब पहलेहिये से बुक हैं. अब जैसे तुम जान दिए जा रहे हो ना, अब सातवीं किलास ने लड़कियां सब भी अपना बॉय फ्रेंड देखे लगती है. हमारी मानो तो अब प्राथमिक विद्यालय के गेट पर खड़ा होके चौथा पांचवां किलास कि लड़की देखो. काहे से कि सब पहलेहिये से बुक है.

मिंकू जो कि इन दिनों प्यार के तौर तरीके और गरदा तरीके से बोलें तो मुहब्बत के पेचो-ख़म सीख रहा है, कोई मन मुताबिक लड़की खोज रहा है. पिंकू जो कि इस कला में मास्टर है और पूरे लाइफ यही किया है उसको अकिल (अक्ल) दे रहा है.

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देख दोस (दोस्त) पियार (प्यार) करे के है ना त ए गो बेसिक फंदा बताते हैं. जिससे पियार हो ना उसको दिल पे चोट दो, जेतना दुःख दोगे ना दिल में बसे रहोगे. देखा नहीं था रे दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे में काजोल जब पूछती है की हमरे सादी में आओगे ? तो कैसे सरुखवा मगरूर काला चस्मा लगा के इतराते हुए से कहता है : नहीं, सेनोरिता, मैं तुम्हारे सादी में नहीं आऊंगा.

बस्स ! बेट्टा यही है पियार का मूलमंत्र ! घोट ले इसको. ऐसा रहा, समझो मामला जमा. तब्बे से ना काजोल को सरुखवा दिखने लगता है. दिमाग दौडाने लगती है कि साला हमको कैसे ऐसा बोल दिया. किसी को घंटा बराबर भी भाव मत दो.


पिंकू, मिंकू को सिखा रहा है और हम आपकी तरह अवाक सुन रहे हैं... भौचक !

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गेंदे के फूल के माला गूंथते हुए चुटकी ने अपनी दीदी को चिढाते हुए कहा - दोस्तों से झूटी-मूठी दूसरों का नाम ले के फिर मेरी बातें करना... मांग में सिंदूर भरती दीदी ने आधे में अपने हाथ रोका और भरी आँखों से हंस दी.
हुं, दीदी कितनी बदल गयी है. इत्ता भी नहीं समझ रही की छुटकी उनसे मार खाना चाहती है. कम से कम दीदी को अभी हँसाने वाला तो कोई है. बाबूजी मेरी भी पसंद के खिलाफ कहीं शादी कर देंगे तो मैं कैसे हसूंगी? कैसा होता है ये सुख! भरी आँख से हसने का ?

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लड़की बुक्का फाड़ कर  रो रही थी जैसे कोई पेड़ कट कर लरजा हो. यकायक राजीव चौक मेट्रो स्टेशन से उठी... कंधे पर बैंग बांधा... लोग हैरान रह गए... गाड़ियों के कई विकल्प थे... मेट्रो अब पिछड़ी क्षेत्र से नोयडा और गुडगाँव जैसे पॉश इलाकों तक भी जा रही थी. कुछ आंसू गाल पर सूखे तो कुछ वापस आँख में लौट गए.. आंसू पोछे नहीं गए. शहर में मेट्रो की लाइन का जाल था और गाल पर आंसू का.. शहर के कम सुने जाने वाले रेडियो स्टेशन अक्सर अपनी गरीबी लता ताई की ह्रदयविदारक आवाज़ में गाते हैं- 'अंखियों को रहने दे, दिल के तू आसपास, दूर से दिल की बुझती रहे प्यास'
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कल आधी रात ही चुड़ैल का फोन आया.. कहने लगी द्वारका में हूँ... फोन कटते ही लड़के ने कसम खाई - अब मुंह तक नहीं देखूंगा साली का. अगली सुबह दफ्तर जाते वक़्त मेट्रो में चढ़ते ही वह पीछे की तरफ द्वारका कितना स्टेशन है, गिनने लगा... मेट्रो आगे जा रही तो और उसका मन पीछे जाने लगा. के अचानक मोटी की गाली निकली, बदन चिमनी बन गया, भीतरी सतहों से स्याह काला धुंआ उठा तो अचानक बोल उठा - आग से नाता, नारी से रिश्ता काहे मन समझ ना पाया !

 
 
पांच इधर झटक लिए पी. डी. ने

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व्यावसायिक सिनेमा

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