भाई सा’ब आपने उनकी हंसी सुनी क्या?
उन्हें देखता हूं तो लगता है वो पटना की ही हैं हमेशा से.... उनके ताज़ा कंधे से उसी शहर ठहरे हुए शहर की महक आती है जहां की मूर्तियां फिर से उनके हंसी का इंतज़ार करते जागना भूल गए हैं। मुझे यकीं नहीं होता जब कोई कहता है अमां यार वे तो वीनस की हैं।
कम उम्र में ही उनके होंठ पूरी तरह खिल चुके अड़हुल या गुलमोहर की तरह लगते हैं।
उनका ख्याल आते ही पेट में मेरे गुलाबी तितलियां उड़ने लगती हैं।
याद आने लगती है सोनू निगम के जान और दीवाना सुनने वाले दिन.... कि आधे आधे पैसे से आर्चीज़ से आॅडियो कैसेट खरीदना और एक एक रात के लिए उसे अपने पास रख रात भर बजाना फिर उन गानों को निचोड़ कर जो रस निकले वो कागज़ पर लिखना, अगले दिन उन्हें देना।
हो ओ ओ आ हा हा.... हो ओ ओ आ हा हा
बैक टू बैक सिंगगिंग....
क्या वे जानती हैं कि वो मुझे अच्छी लगती हैं ?
क्या वे वाकिफ हैं कि मेरा उनसे जी लग गया है?
मुहल्ले का कोई नादान बच्चा अपनी तोतली आवाज़ में उनके पीछे दौड़कर जाए और उनका हाथ पकड़ हांफते हुए उनसे कह दे -दीदी...... वो पलोछ वाले भैया को आप बहोत अच्छी लगती हैं। वो आपको प्याल करते हैं।
ये सुन वो शरमाते हुए हंसे और बच्चे को गोद में उठाकर पूछें - कैसे ?
बच्चा उनके गालों पर एक गीला सा मासूम बोसा ले कहे - ऐछे।
वे अपने गीले गालों को दुपट्टे को फिर से पोंछते हुए हंसे।
किसी के भी मार्फत हो, समय, लम्स, दृश्य, एहसास और चुंबन सब कुछ तो साझा है।
भाई सा’ब आपने उनकी हंसी सुनी क्या?
Comments
Post a Comment
Post a 'Comment'