भाईसा’ब आपने उनकी हंसी सुनी क्या ?
वे इस तरह हंसती हैं जैसे उमस भर मौसम के बाद एक रात बारिश होती है। सुबह जब आप टहलने निकलते हैं तो अधिकांश सतह सूख चुकी होती है लेकिन छोटे छोटे गड्ढ़ों में पानी के चहबच्चे जमा हो जाते हैं।
सकेरा हुआ ठहरा पानी सपना है और उदास और सपाट सतह मेरा जीवन। मैं ढ़लान खोजते हुए गोल्फ की गेंद की उन चहबच्चों में डुबक जाना चाहता हूं।
माफ करें मैं गेंद का आयतन भी नहीं पाना चाहता क्योंकि वो एक शुरूआती डुबकी के बाद उन चहबच्चों में उतराने लगती है। कुछ कुछ ऐसे ही हेलती है जैसे बीच नदी नाव के चारों ओर डूबते बच्चे बचाने की गुहार लगाते हैं।
मैं भूरे कंचे वाली उन आंखों की रोशनी की गहराई में किसी आवारा लड़के की सिद्धस्त उंगलियों द्वारा कंचे की तरह पिल जाना चाहता हूं।
मैं उसकी हंसी के निर्वात में गौरैया का पंख बन जाना चाहता हूं।
भाईसा’ब आपने उनकी हंसी सुनी क्या ?
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