तकिए पे आहों की अनगिन सिसकियां हैं
कभी तुम्हारा बाल टूट कर छूट जाया करता था जिसपर
हाट ले जाने वाले झोले में अब बेहिसाब जिम्मेदारियां
बैंगन, तोरी, टिंडा, मेथी, अजवाईन, जीरा, परवल
एक ज़रा ध्यान तुम्हारा गया तो सुनीता चमकीं
अरे ! दातुन नहीं लाए।
परिपक्व हो चला अब बनाता हूं फौरी बहाने
नीम का था, आज मिला नहीं
उसे जवाबों ने न कोई लेना
नहीं ही जरूरी भी कोई मेरा जवाब देना
वो न सुनती, मैं न कहता
सांझ ढ़ले लालटेन शौक से जलाती सुनीता
आंखें क्षण भर दिप दिप करती, पलकों पे उसका कन्हैया नाचता
मैं जान रहा होता, मोरनाच करते रोशनी को, उसके प्रेमी को
वो समझ रही होती मैं छूट गया हूं
जल्दबाजी में पोछे गए लिप ग्लाॅस की तरह अपनी प्रेयसी के पास
हम दोनों बिला मतलब झगड़ते
हम दोनों एक दूजे की बेबसी समझते,
हम दोनों परस्पर हमदर्दी रखते
हम दोनों आधी रात अनजाने में करीब आते
हम दोनों किसी बहाने ज़ार ज़ार रोते और मजबूत होते
हम दोनों नहीं होते मौजूद जब संभोग होता
हम दोनों के बच्चे स्कूल जाते हैं, गेहूं पिसवाने को पैसे मांगते हैं।
हम दोनों एक दूजे को अब तक नहीं पहचानते हैं।
सिर्फ़ एक शब्द ...गज्जब
ReplyDeleteबहुत अच्छी
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