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प्रतीक्षा



जीवन जीते जीते हम कितनी चीज़ों से मोह लगा बैठते हैं। ख्वाहिशें हैं कि कभी खत्म नही होती। हर मुहाने पर जाकर सोचते हैं कि काश थोड़ा और होता... कभी किसी रिश्ते में... कभी कोई मीठा सा लम्हा.... वक्त है कि ऐसे पलों पर भागा जाता है और रेशम पर रेशम की तरह फिसलता जाता है। हम यह सोचते हैं कि ज़रा और चलता। 
हमारा दिल भी अजीब होता है। हम किसी न किसी मोड़ पर किसी न किसी को चांस देते हैं। कभी घटनाओं के दोहराव में तो कभी अनुभव के लिए तो कभी एक उम्मीद में जो हमारी आत्मा में रोशन राह भर दे। आत्महत्या करने के कई मौके आते हैं और अगर अभागे न हुए तो कोई दिलबर हमें फिर से मिलता है। हम खुद को प्यार के मौके भी देते हैं। कुछ कम देते हैं और मेरे जैसा आदमी ज्यादा देता है। दिल कभी नहीं भरता। यह शाश्वत भूखा और प्यासा है। हर वक्त थोड़ा और मोहलत मांगते हम न जाने कितनी ही घटनाओं, संबंधों, दृश्यों से अपना दिल जुड़ा लेते हैं और यह मोह हमारे लिए परेशानी का सबब बन जाता है।

मैं यह क्यों लिख रहा हूं पता नहीं। मन में किसी स्तर पर शायद चल रही है यह बात इसलिए लिख रहा हूं। इसकी शुरूआत क्या है, क्यों है, और इसकी अगली कड़ी क्या है नहीं जानता। मैं कामना में डूबा एक भोगी आदमी हूं जो अपनी वासनाओं में ही लिप्त रहता है। भला मेरा इस तरह से सोचने का क्या मतलब। मैं क्यों अपने ट्रैक से हटकर सोच बैठा। मेरी चाहतें, कामनाएं, वासनाएं तो चिरयुवा हैं। वह इतनी पिपासु हैं कि कभी शांत नहीं होती और वह अपने दोहराव और घेरे में ही घूमती रहने के बावजूद नहीं थकती। 

क्या मैं बूढ़ा हो रहा हूं। या मैं थकने लगा हूं। क्या मेरी ऊर्जा जाती रही है। उम्रदराज़ लोग मुझे शुरू से आकर्षित करते रहे हैं कहीं यह चाहत ही तो मुझे ऐसा नहीं बना रही। या कुछ चीज़ों की प्रतीक्षा ने कहीं मेरी आंखों को पथरा तो नहीं दिया। मेरी सूनी आंखें आखिर किसकी प्रतीक्षा करती है। क्यों सारी जानकारी होने के बाद भी हम जीने के स्तर पर सामान्यों जैसा जीते हैं। 

किसी से खुलकर बात न कर पाना तो कहीं इस तरह के उलझनों का कारण तो नहीं है।

जूते का सोल है जीवन। घिसा जा रहा है। हम जूते की तरह सर्वाइव कर रहे हैं। 

Comments

  1. हम सब उन लम्हों के इंतज़ार में हैं जैसे वह हमारी पहुँच से काफ़ी दूर निकल आए हों। उन तक पहुँचते-पहुँचते पता नहीं क्या पता वह अपना रंग ही बदल लें, तब क्या होगा। जूता थोड़ा और घिस जाएगा। शायद।

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  2. सच इंसान की इच्छाएं अंतहीन होती है ..
    अच्छी विचार प्रस्तुति

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