ऐसा लगा कि तुमने सरे बाज़ार मेरे जवान और कोमल सीने से दुपट्टा उड़ा दिया। उसी सीने का ख्याल कर तुम किसी अंतरंग पल मुझसे कहते थे कि तुम्हारा यह छुपा हुआ सीना मुझे शरीर बनाता है। आज सबके सामने जो तुमने यूं उघाड़ा तो मैं एक ही पल में जीते जी मर गई। लगा किसी ने तीन सेल वाली टार्च की बत्ती आंखों में ही जला दी। अंधी हो गई अपमान और शर्म के मारे।
मेरा कंधा झूठा होकर सिकुड़ गया था। एक स्त्रीसुलभ परदा। निर्लज्जता से लोहा लेती लाज। ऐसी लाज जो हारती नहीं बस बेबस महसूस करती है कि तुमने बराबरी से युद्ध नहीं किया। तुमने युद्ध के नियम तोड़े। दरअसल तुम्हें अपनी तय हार की जानकारी थी। तुम्हें पता था कि तुम देर तक टिक नहीं सकोगे। ऐसे में अपने मरदानेपन के खोखले अहंकार में चूर होकर तुम ऐसे चाल चलकर स्वयं को विजेता समझते हो। हर बार स्तंभन को तैयार तुम्हारा लिंग तुम्हें मदांध करता है।
लेकिन,
मैं पुर्ननवा हूं हर पल नई हो जाने वाली। चार ही दिन बाद जब मुझे किसी महफिल या जलसे में देखोगे तो तुम्हारे अंदर पलने वाली व्यस्नी मछली तड़प उठेगी। फिर वैसी ही हूक उठेगी। यह देखकर और तिल मिल मरोगी कि आज दुनिया जिसके लिए आहें भर रही है उसी को तुमने नीलाम किया था। फिर पहले से भी ज्यादा जंगली और वहशी होकर मेरा ख्याल करोगे। और पछताआगे कि साली के साथ अलां अलां काम नहीं किया था अबकी हाथ लगे ये सारे काम ऐसे ऐसे करूंगा। मैं नहीं जाऊंगी बदला लेने न ही किसी को भड़काऊंगी। तेरा अपना अवसाद ही मारेगा तुझे। बूंद बूंद भभकते तेज़ाब गिरती रहेगी तुझ पर।
बाप रे ..गजब की अभिव्यक्ति और क्या तेवर ..उम्दा .....भाई ..ऐसा आप ही लिख सकते हैं
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