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Say-ओए-होए, होह-होए











1 बाहर/दिन/यूनिवर्सिटी का मैदान

कलाई पूरी तरह से घुमती है। घुटने को नीचे झुकाकर बल्लेबाज बाहर जाती हुई गेंद को स्वाक्यर कट लगाता है। विकेटकीपर सूने ग्ल्बस् को अपनी पेट की ओर खींचता है। दोनों पैर हवा में हैं और निगाहें घास पर फिसलती गेंद पर जो सीमा रेखा के बाहर जा रही है - चार रन।

इस तरह, बल्ले का संपर्क छूटते ही गेंद मैदान पकड़ती और एक पर एक क्लासिकल किताबी चौका लगता जाता। `अमित का ऑफ साइड बहुत मजबूत है` अहाते से सनग्लासेज लगाए आती-जाती लड़कियां मुस्कान फेंकती है और मुलायम ताली बजाती हैं जिससे ताली की आवाज नहीं आती लेकिन वो उत्साहवर्धन और `बेटा तू लिस्ट में है` का भ्रम देती है। प्रत्युत्तर में बल्लेबाज भी पसीना पोंछने के बहाने हेलमेट उतारता है और मुस्कान बिखेरता है। मैदान के सारे क्षेत्ररक्षक पलटकर गैलरी की तरफ देखते हैं और ओवरकांफिडेट होकर अपना कॉलर चढ़ाते हुए अगली गेंद पर जान की जानी लगा देने वाली फििल्डंग का जज्बा लिए बल्लेबाज की तरफ बढ़ते हैं। उधर गेंदबाज़ अजीत अगरकर की तरह अगली गेंद फेंकने के लिए अपनी सांसें बटोर रहा है। बल्लेबाज फिर हेलमेट लगाता है, बल्ला हवा में घुमाता है फिर ज़मीन पर ठोंकता है। गेंदबाज गोली की रफ्तार सा अम्पायर के पास से गुज़र...

कट टू :
2 बाहर/दिन/यूनिवर्सिटी का मैदान

कैमरा कॉलेज के प्रवेश द्वारा पर के जंग लगे साइनबोर्ड को दिखाता हुआ ढ़लते सूरज को फ्रेम में लेता हुआ नीचे आता है जहां सूर्य की किरणें सीधे ज़मीन पर नहीं आ रहीं। सूरज की लाल-पीली रोशनी छितरा रही है। और उसे रोक रहे हैं जींस-कुरते में घुसते हुए कुछ छात्र जिनके हाथों में हॉकी स्टिक हैं। शोर-शराबे के साथ गालियां देते हुए वो अंदर आते हैं। वो उस प्रोफेसर का समर्थन कर रहे हैं जिन्हें कल कॉलेज से निकाला जा रहा है। उन छात्रों में वो लड़का भी है जिस पर निहायत ही पढ़ाकू होने का मुहर भी लगा है।

कट टू :
3 बाहर/दिन/यूनिवर्सिटी का मैदान

कैमरा फिर 180 डिग्री घुमता हुआ जमीन से गर्द उठता दिखाता है। कुछ मोटरसाइकल सवार तेज़ गति से आते हुए अपनी बाइक बीच पिच पर रोकते हैं। ब्रेक की खतरनाक आवा़जें आती हैं। सभी खिलाड़ी सहमते हैं। पहले गाली-गलौज और फिर मार-पीट होती है। जिस कोच के देखरेख में खेल हो रहा है उसकी लक्षित पिटाई भी होती है। मामला प्रिंसीपल रूम तक जाता है। कॉलेज प्रशासन स्थिति गंभीर भांप कर फोन घुमाता है।

कट टू :
4 बाहर/दिन/यूनिवर्सिटी का मैदान

एक के बाद एक पुलिस की कई गाड़ियां सायरन बजाती कैम्पस में दाखिल होती है। छात्रों और पुलिस में घमासान मच जाता है। हवा में कई हाथ उठते हैं जो तोड़ दिए जाते हैं। पिच की दरार खून से भर जाती है और अचानक स्पीनरर्स से तेज गति के गेंदबाज लायक बनती जाती है...

कट टू :
5 अंदर/दिन/यूनिवर्सिटी-कांफ्रेंस रूम
(कांफ्रेस रूम का लांग शॉट)

वाइस प्रिंसिपल : आप पर आरोप है कि आपने कक्षा में कुछ ऐसी बातें बताई जो पाठ्यक्रम में नहीं है, जिससे अनुशासन हनन होता है एवं राज्य की राजनीति प्रभावित होती है। आप इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि इस राज्य में पहले से ही प्रजातंत्र है फिर ऐसी बातें पढ़ाने का क्या औचित्य है?

(प्रोफेसर के चेहरे का क्लोज शॉट वो दार्शनिक बने हुए हॉल का आकाश देख रहा है)

कट टू :
/फ्लैशबैक/

6 अंदर/दिन/स्कूल ...

सटाक्!

(कच्चे हरे बांस लचकती हुई बेहद पतली छड़ी एक के बाद उसके पैर पर बरसती है और निशान छोड़ते हुए उठती है)

आग लगाएगा ?

सटाक्...

(क्लासरूम में सन्नाटा)

हरामजादे... भड़काएगा?

सटाक्...

(सभी विद्यार्थी अवाक्)

बोल... (मारता है) बोल ना (मारता है) (फिर मारता है)

लड़का तमतमा जाता है, झुक कर पैरों पर लगे चोट को सहलना चाहता है। उस का विश्वास है कि अगर वह एक बार उस चोट खाए हुए जगह को सहला लेगा तो उसका दर्द कम हो जाएगा और वह मास्टर की ज्यादा छड़िया खा सकेगा।

सटाक्...

/फ्लैशबैक खत्म/

प्रोफेसर एक नज़र छात्रों को देखकर हड़बड़ा कर निकल जाता है।

कट टू :
7 अंदर /रात/चलती ट्रेन का दृश्य

(प्रोफेसर अपनी डायरी लिख रहा है)

``बरसों से यह प्रोफेसर आग लगा रहा है कई चीज़ों के खिलाफ। कॉलेज भी सोच रहा होगा कि मेरे जाते ही मामला ठंडा पड़ जाएगा पर नहीं विरासत ऐसे ही छोड़ी जाती है। विद्यार्थियों को एक संबल को मिल ही गया जो आगे जीवन में काम आएगा। यह आग धूप में जलती दियासलाई जैसी जरूर है जो बुझने का भ्रम देती है लेकिन जलती रहती है....``

Comments

  1. सागर,
    मस्त है, एक दम गंभीर कितने सन्दर्भ हैं जो बिना कहे प्रस्फुटित हो रहे हैं और शब्द तो वल्लाह जैसे " मुलायम तालियाँ "

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  2. ओये ओये होए होए...आपकी लेखनी में बहुत दम है...रवानी है...वाह...
    नीरज

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  3. सागर भाई बिहार में पत्रकारों की क्या विसात हैं यह लेख का विषय नही हैं हम यह दिखाना चाह रहे हैं कि व्यवस्था क्या हैं ।इस व्यवस्था में आम आदमी कहा हैं लोगो को सरकार से क्या चाहिए आजादी के साठ वर्ष बाद अगर हम बेहतर व्यवस्था भी मुहैया नही करा पा रहे हैं तो फिर इस आजादी का क्या मतलव हैं।लालू प्रसाद को बिहार के आम लोगो ने गद्दी से हटाया था हटाने वालों में यादव,मुसलमान सभी की भूमिका रही जिस तरिके से समाजिक न्याय के बुनियाद पर लालू 15वर्ष राज्य किया उस बुनियाद को गांव के गरीब गुरबा ने भ्रष्टाचार,बिगड़ते कानून व्यवस्था और बेहतर परिवेश उपलब्ध नही करा पाने के कारण हटा दिया ।लालू के गद्दी से हटना भारतीय राजनीत का सबसे बड़ा मेरेक्लस कह सकते हैं क्यों कि जिस तरीके से राजनीत में जातपात छल प्रपंच चलता हैं उसमें लालू के जोड़े का इस देश में कोई राजनीतिज्ञ नही हैं।बिहार की जनता ने इस मिथ्या को तोड़ते हुए लालू को गद्दी से बेदखल कर दिया लेकिन नीतीश गद्दी सम्भालते ही।शहर के लोगो को विकास का शब्दवाग दिखा कर ग्रामीण समाज को पिछड़ा अति पिछड़ा और दलित महादलित में बांट दिया।आज पूरे बिहार में फिर से वर्ग संर्घष छिड़ गया हैं भ्रष्टाचार चरम पर हैं ऐसे मैं बिहार की जनता करे तो क्या करे।मीडिया को नीतीश की सरकार ने इस तरह से नकेल कस दी हैं कि सच के सामने आना तो दूर बड़ी से बड़ी घटना अखवार और मीडिया की सुर्खिया नही बन पाती हैं,।

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  4. यह आग धूप में जलती दियासलाई जैसी जरूर है जो बुझने का भ्रम देती है लेकिन जलती रहती है....

    ...Bhai yahi to hai...

    Yahan har ek manzar ka virodhabaas hota hai !!

    Sabse zayada jis cheez ne prabhavit kiya wo hai kahani kehne ka dhang.
    Wo line kya thi?
    haannnnnn...

    "Dararrein khoon ke cheeton se bhar gayi..."
    ...Behterin !!

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  5. सात सीन हैं...और एक फ्लैश बैक का भी इस्तेमाल कर रहे हैं..पढ़ने के लिहाज से तो ठीक है लेकिन संपूर्णता का स्पष्ट अभाव दिख रहा है...कम से कम फिल्म मेकिंग के लिहाज से...इस पर शार्ट फिल्म भी नहीं बन सकती है...प्रत्येक सीन के साथ चरित्रों का नाम भी लिखे...व्यवहारिकतौर पर कलाकारो के बीच जब स्क्रीप्ट डिस्ट्रिब्यूट किया जाता है तब उन्हें सीन की संख्या देखते हीं पता चल जाता है कि अमुक अमुक सीन में उनकी भूमिका है...शैौकियातौर पर सक्रीप्ट फारमेट में किसी बात को कहा तो जा सकता है,लेकिन स्क्रीप्ट की संपूर्णता तभी बनती है जब शूटिंग के लिहाज से कंप्लीट हो....बेहतर होगा आप एक शार्ट फिल्म की स्क्रीप्ट लिखिये...कहानी को मेनटेन करते हुये....वैसे आप स्क्रीप्ट राइटिंग के बहुत करीब है...थोड़ा सा इंप्रेस हुआ हूं, टूकड़ों में जैसा आपका स्क्रीप्ट है उतना ही....बागी प्रोफेसर का कैरेक्टर ठीक जा रहा है...बाकी फिर कभी..

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  6. Likhne kee shailee pasand aayi. ghatna kee rochakta aapne badha dee.

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व्यावसायिक सिनेमा

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