अपने घर का ख्याल करो, एकलौते हो तुम
कहा ना “पत्ते मत फेंकिये”...
क्या सवार हुआ है तुमपर ?
अक्ल आ गयी है
अच्छा, तो हम लोग सब बेअक्ल हैं ?
नहीं, पर नजरिया अलग हो चुका है हमारा
यह सब तुम्हारे किताबों की देन है, कोर्स की किताबों से ज्यादा तुम इधर-उधर की किताब पढते हो...
क्या आश्चर्य की बात नहीं है की पढ़ना और जीना दो अलग-अलग चीजें हैं, हमने इसमें भी अपनी मक्कारी मिला रखी है, मैं इधर उधर की नहीं, लेलिन की, भगत सिंह की...
तो साहेबजादे के नंबर इसलिए कम आते हैं ?
कोर्स की किताबों में क्या है ? कायरता के गुणसूत्र हैं वहाँ....
क्या कह रहे हो ? वहाँ स्वस्थ जीवन शैली के तरीके हैं, एक सभ्य- शिक्षित समाज है, सपना है, तरक्की है, समानता है, सामजिक न्या...
मार्केटिंग जुबान मत बोलिए, दिख रहा है सामाजिक न्याय, रख लीजिए इसे झोले में, रात में बर्गर के साथ खाइएगा, आई पी एल देखते हुए....
तुम्हारे मन में क्या है ?
मुझसे संतोष कर लीजिए
(अवाक् होकर) क्यों ?
हम दोनों एक दूसरे के लायक नहीं हैं ?
फिर ?
फिर क्या ? संतोष कर लीजिए मुझ से, हमेशा के लिए
इसी दिन के लिए पैदा किया था ?
हाँ. इसी दिन के लिए...
तुम्हारे मन में क्रांति-व्रांति की बातें तो नहीं हैं ? होश में तो हो ? भारत आज़ाद देश है फॉर योर काईंड इनफोर्मेशन, मुझे लगता है तुम कन्फ्यूज्ड हो ?
वर्चस्व बनाने के लिए सबसे पहले लोग यही कहते हैं, और भारत से मुझे भी मुहब्बत है दिस इज फॉर योर काईंड इनफोर्मेशन.
अच्छा और किस्से मुहब्बत है, इश्क किया है कभी ?
हाँ.
जवाब बड़ा छोटा दिया !
क्योंकि दूसरा मसला बड़ा लगने लगा पापा
माँ-बाप से प्यार नहीं करते हो ?
बहुत करता हूँ, पर इतना काफी नहीं होगा...
आगे कुछ सोचा है ?
हाँ पर अभी से मुझसे उम्मीदें... सही रास्ते पर रहूँगा, वर्ना आइकन बनने के चक्कर में मर जाऊंगा...
सर पर छत का मतलब नहीं जानते तुम शायद
जानता हूँ पर पहले पाँव के नीचे जमीन तो हो
अभी किस पर खड़े हो ?
भरम पर, वहम पर
तुम जो तेवर आज लिए हुए हो वो पांच साल के बाद नहीं रहेगा
जानता हूँ, इसी बात का डर है, आदमी को समय रहते मर जाना चाहिए... मेरी बुद्धि बदल रही है, हमारे तकरार बढते ही जायेंगे, मैं आप पर बोझ बन कर नहीं रहना चाहता इसलिए घर छोड़ने का फैसला किया है
इसका मतलब जानते हो ?
हाँ, मेरे रास्ते में होगी, भूख, प्यास, परेशानी...
कहीं सुना हुआ लगता है!!!
सुभाष चंद्र बोस ने कहा था.
वो दौर खतम हो गया बेटा
युवाओं के लिए आज भी है.
यही सन्देश दे कर जा रह हो समाज को ?
हाँ, जिनमें कलेजा होगा वो भी इसे चुनेंगे या फिर पागल कह देना और मरने के बाद बागी... वैसे बांकियों से मुझे शिकायत भी नहीं है...
और हमारा बुढ़ापा ?
तो इसी का इंतज़ार है ?... खैर ... काट लोगे आप.
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(... और वो घर छोड़ कर चला गया, आगे का नहीं पता... पर लेखक उसके समर्थन में यही कहना चाहता है अगर घर छोड़ने का आधार यही था तो वो यहाँ तक सही था...)
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चलते-चलते...
आज जलियाँवाला बाग हत्याकांड की 91वीं सालगिरह है... दिस इज फॉर योर काईंड इनफोर्मेशन
यकीन मानो पढ़ते हुए सोच रहा था कि आज जलियावाला की बरसी के दिन तुमने बिलकुल सटीक लिखा है.. और अंत में उतरने के बाद देखा तो तुम खुद ये इन्फोर्मेशन दे रहे हो और वो भी बड़ी काईन्डली.. बाप बेटे का संवाद रक्त संचार तो बढाता है पर उसके आगे नहीं ले जा रहा.. शायद कभी तुम इसका सिक्वल लाओगे..
ReplyDeleteपिता पुत्र के रिश्ते की नाज़ुक कड़ी आगे बढ रही है...
ReplyDelete१३ अप्रैल को बैसाखी वाले दिन बर्बर जनरल डायर की गोलियो का हजारो लोग शिकार हुए.इस घटना के बाद डायर ने हंटर कमेटी के समक्ष डींगे हांकते कहा था 'उनका उदेश्य भीड़ को तितर बितर करना नहीं बल्कि उन्हें सबक सिखाना था.न केवल वहा मौजूद लोगो को बल्कि पूरे देश को'.जिस सर माईकल ओडवायर लेफ्टिनेंट गवर्नर पंजाब के हुकम से डायर ने गोलिया चलवाई थी उसीकी विदाई पार्टी में हमारे लोगो ने बढ चढ़ कर शिरकदारी की.इसमें अंग्रेज के पिट्ठू भारी तदाद में शामिल हुए .उसे सम्मानित करने के लिए तोहफे तक ले गये.उस के सामने जो शब्द इन पिट्ठुओ ने कहे थे उन्हें सुनकर किसी भी भारतीय का सर शरम से झुक सकता है..इक पिट्ठू ने कहा 'भले ही आपकी शानदार सरकार और कानून ने अमन के दुश्मनों ,जिन्होंने संगठित हो कर फसाद और गड़बड़ की है,हुजूर की दूरअंदेशी ,दृढ़ता व् मार्शल ला के प्रभावशाली तरीको को इस्तेमाल करते हुए हालात को जल्दी ठीक कर दिया.हम सभी बादशाह सलामत के बड़े शुक्रगुजार है.हम गुजारिश करते है के आपकी नौकरी की म्याद और बढाई जाये..
शहीदो की शहादत को सलाम..
पहली किश्त से भी बेहतर...जबर्दस्त तरीके से बात को आगे ले गये हो..एक पावरहाउस-टाइप कन्वर्सेशन..एक कहानी याद आती है बरसों पहले शायद सारिका के किसी अंक मे पढ़ी हुई..लेखक याद नही..मगर जो पहली (सुविधाभोगी और संतृप्त) पीढ़ी से तीसरी (बागी और असंतुष्ट) पीढ़ी के टकराव को सामने लाती थी..और यह महसूस कराती थी कि आजादी के बाद के ४० सालों मे क्या पीछे छूट गया...कुल मिला कर बेहद विचारोत्तेजक श्रंखला (उम्मीद करता हूँ कि अगले भाग भी सामने आयेंगे..वरना...!!)..टाइटिल वाकई फ़िट होता है इस पर..मगर सोचना है कि कालेज के अनुशासनों के खिलाफ़ स्क्रीन पर बगावत कर मुहब्बतों का झंडा बुलन्द करने वाले शाहरूख खानों पर ताली बजाते हम लोग क्या इस पात्र की बगावत का वास्तविक निहितार्थ समझने लायक हैं?
ReplyDeleteपुनश्च:
ReplyDeleteजलियाँवाला बाग की तारीख की याद दिलाने के लिये बेहद शुक्रिया..और शुक्रिया डिम्पल जी का भी जिनके कमेंट से रगें उबालने वाली बात पता चली...
उम्मीद है एक किस्त दूसरी ओर से भी आएगी....क्यूंकि उस ओर तो मात है दोनों ही चालो में ........
ReplyDeleteदिन याद दिलाने का शुक्रिया ....
वैसे लोग आंबेडकर जयंती की वजह से छुट्टी को ज्यादा याद रख रहे है
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ReplyDeletemobilno-09431443901
ReplyDelete-09304086802
e mail.id-santoshsingh.etv@gmail.com
padhte hue aur padh lene ke baad bahut kuchh soch raha hun
ReplyDeleteतमाम कभी न पूरी होने वाली ख्वाहिशों में एक ख्वाहिश है की कभी बैठूं और अपने पापा से खूब सारी बातें करूँ...जिंदगी के बारे में, कुछ अपने फैसलों के बारे में...बहुत कुछ और. तुम्हारी पोस्ट पढ़ के ऐसी ख्वाहिश फिर सर उठाने लगी है...और इसके कभी पूरा न हो पाने की सच्चाई से कुछ टूटने लगा है.
ReplyDeleteडिम्पल से अनुरोध है की वो इस गाने का अनुवाद यहाँ लगायें.
ReplyDeleteस्वाभिमान के बगैर बंदा बुजदिल होता है,
ReplyDeleteस्वाभिमान से ही इज्ज़त होती है,
स्वाभिमान वाले किसी मुसीबत से नहीं डरते,
युद्ध करने वालो के हाथ में हथकड़ी होती है.
स्वाभिमान के बिना बदले नहीं लिए जाते,
न मुछ खडी की जा सकती है,
पिंजरे में ज्यादा देर शेर नहीं टिक सकता,
सभी जानते है शेर निडर होते है,
य़े बातें गोरो को भगत सिंह ने समझाई.
soch wahi hai.......
ReplyDeletebhagat singh pada jarur hone chahiye magar apne ghar nahi padosi ke ghar mein..........
’हज़ारो ख्वाहिशे ऐसी’ देखना...
ReplyDeleteउम्मीद है एक किस्त दूसरी ओर से भी आएगी....क्यूंकि उस ओर तो मात है दोनों ही चालो में ........
ReplyDeleteपढ़ा और अब सोच रहे हैं!
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