लड़का दुनिया भर की बातें किया करता। कहता - तुम्हें सांवला होना चाहिए था ताकि तुम्हारे पैर की चांदी की पायल ज्यादा चमकती। यूं गोरे पैरों में उजला रंग ज्यादा नहीं जंचता। कभी मोटे मोटे मासूम गालों में चिकोटी काट कर बच्चों को दुलराती हुई आवाज़ में कहता - थोड़ा और खूबसूरत नहीं होना था। और जब यह कहकर अपना मुंह उसके गाल के पास ले जाता तो जीभ पर थोड़ा सा नमकीन पानी आ जाता। यह कहां संभव था उसका खूबसूरत दिल दुनिया को दिखाया जाता लेकिन लोग थे कि हैरान थे कि साले को उसमें आखिर ऐसा क्या दिखा जो उससे जी लगाए बैठा है!
अक्सर दोनों दूर तक घूम आते। ज्यादातर पहाडि़यों पर जाना होता। मुंह से भाप निकलते हुए एक दूसरे को देखना एक अजब सा सकून देता। अकेलापन पूरा भी था और अधुरा भी। प्रेमी प्यार करने के बाद वैसे भी अपना अधूरापन हर जगह साथ लिए चलते हैं। पहाड़ पर ही क्यों? तो इसका बड़ा साहित्यिक सा जवाब है कि वहां सदाएं गूंजती हैं और इश्क में गहरे उतरे हुए पर दूर-दूर रहते हुए जैसे प्रेमी नदी, झरना, परबत, फूल, तितली, जूगनू, रंग, मौसम, समंदर आदि से भी दिल लगा बैठते हैं कुछ उसी एहसास लिए पहाड़ पर जाते।
लड़की अपने साथ रेडीमेड चाय की पत्तियां रख लेती, लकड़ी खोजना कठिन ना था। लड़का किसी चरवाहे से दोस्ती गांठता, प्यार के दो मीठे बोल बोलता, बकरियों की एक टोली को थोड़ी दूर तक चरा लाता। बदले में चरवाहा एक बकरी के एक वक्त का दूध खुशी-खुशी दे देता।
दोनों चाय पीते। कुछ बोलते, ज्यादा गुनते। बीच-बीच में एक लम्बी चुप्पी आ जाती। थोड़ी देर बाद दोनों खुद में ही असहज महसूस करते। इधर उधर गर्दन घुमाते और कोई नई बात कहने की सोचते। जो कहना होता सामने वाले को पहले से पता होता और कुछ मिला कर एक ऐसा माहौल बनता जैसे कोई बहुत बोरिंग सी नाटक देख रहे हों और अगला अब क्या करेगा और कौन सा संवाद होगा पूरा स्क्रीप्ट हमारे दिमाग में सहेजा हुआ होता है।
कई बारी ऐसा भी होता कि एक-दूसरे को देख दोनों दिल ही दिल में पछताते कि काश प्यार नहीं हुआ होता तो ऐसा बुरा हाल भी नहीं हुआ होता। क्षण भर बाद ही फिर अपराधबोध उभर आता। उसे मिटाने के लिए किसी बहाने से एक दूसरे का हाथ पकड़ लेते। बात कुछ और करते पर दिल ही दिल में माफी मांगते और पछताते। कहीं से यह प्रतिज्ञा भी करते कि अब और ज्यादा टूट कर प्यार करेंगे।
कुछ हादसे हो चुके थे, कुछ होने वाले थे। जो हो चुके थे वो झेले जा चुके थे जो होने वाले थे उसका इल्म दोनों को था। इस ख्याल ने भीतर ही भीतर ऐसा उत्पात मचा रखा था कि 22-23 साल का प्यार 28-29 में तब्दील हो गया था। यह थका देने वाला था। पेट का दर्द अभी मीठा भी नहीं हुआ था कि परिपक्व हो गया। बातों में फिलोसफी गिरने लगे। सिगरेट का कश लंबा खींच कर देर में छोड़ा जाता। कई बार इतनी देर हो जाती कि लगता धुंआ अब बाहर नहीं आएगा।
पहाड़ों पर सांझ ठहर जाती। पेट में पड़ा कंकड़ बढ़ कर पत्थर का रूप लेने लगता। कई बार ढ़लते-ढलते सूरज भी रूक जाता अब आलम यह था कोई कुछ कहता तो अपने कहे को उसी तान पर सुनने की कोशिश करता और सामने होने के बावजूद आवाज़ उस तक देर में पहुंचती। कहने वाला देखता कि हवा की तरंगों पर वो जा रही है आवाज़, एक कदम, दो कदम..... अब उसके कान तक पहुंची, समाई, वो अब उसके मस्तिष्क में हरकत हुई और अब लड़की को समझ में आई और अब उसकी प्रतिक्रिया होने वाली है।
सांझ के सन्नाटे साथ देते। आंखें फाड़कर देखा जाता तो कहीं-कहीं ही सही झाडि़यों का झुरमुट ज्यादा अंधेरे में डूबा लगता। कितनी तो टोकरी अंधियारे की रखी हुई लगती। पलकें देर से झपकायी जाती और अंधेरा प्याला दर प्याला दिल में उतरने लगता।
हादसों ने हमें बताया कि तुम्हारा रूतबा किस कदर अहम था।
एक-दूसरे को देख दोनों दिल ही दिल में पछताते कि काश प्यार नहीं हुआ होता तो ऐसा बुरा हाल भी नहीं हुआ होता। क्षण भर बाद ही फिर अपराधबोध उभर आता। उसे मिटाने के लिए किसी बहाने से एक दूसरे का हाथ पकड़ लेते। बात कुछ और करते पर दिल ही दिल में माफी मांगते और पछताते।
ReplyDelete:)
Likhte to bahut sundar hain aap.lekin is baar ant kuchh adhoora-sa laga!
ReplyDeleteये शब्दों के रेशमी ताने बाने के बीच जो अप्रत्यक्ष सी कुछ गांठे भी बुन दी हैं आपने राइटर साहब उन्हें सुलझाने (समझने) की कोशिश में दो बार पढ़ ली पोस्ट और निष्कर्ष ये निकला कि गाना बहुत ख़ूबसूरत है :)
ReplyDeleteहादसों ने हमें बताया कि तुम्हारा रूतबा किस कदर अहम था।
ReplyDeleteकभी न भूलेगा यह।
हादसों ने हमें बताया कि तुम्हारा रूतबा किस कदर अहम था।
ReplyDeleteकभी न भूलेगा यह......hum bhi na bhoolenge ye.....
sadar.
पहली लाइन तो खैर उम्दा है ही.. पर मुझे धुंए का देर तक अंदर रहना अच्छा लगा..
ReplyDeleteप्यार जीवन भर नहीं चलता ये भी सच है..
उफ़ फिर वही मर्ज़ ...दिल की बीमारी बेहद आकर्षक अंदाज़ में लिखा है पहला पैरा ख़ास पसंद आया
ReplyDeleteउम्र अभी ज्यादा नहीं हुई तुम्हारी ....पर दुनिया को देख समझने लगे हो ठाकुर !
ReplyDeletelove title