सौ तड़कती रातें हैं फिर एक मिलन का दिन है। एक हज़ार बद्दुआएं हैं, फिर नेमत की एक घनघोर बारिश है। बारिश कम है जीवन में, प्यास अधिक। इतनी अधिक कि कई बार बारिश के दिन भी प्यास नहीं बुझती। लगातार लगती प्यास हमें मारती है, पत्थर बनाती है। सूखे प्यास का नमी भरा एहसास बारिश वाले दिन ही होता है। दरअसल आज जब मेरी प्यास बुझ रही थी तब मुझे अपने प्यासे होने का सही अर्थ संदर्भ सहित समझ में आया। xxx उसका हाथ अपने हाथ में लिया तो एक ढाढस सा लगा जैसे कोई एक सक्षम व्यक्ति कारगर उपाय बता रहा हो। वो अनपढ़ जाने किस तरह की शिक्षित है कि वह मुझ जैसे अहंकारी में भी कृतज्ञता का भाव पैदा कर देती है। xxx हमने बहुत कोशिश की एक होने की। लेकिन इसी प्रयास में हमारा यह विश्वास पुख्ता हुआ कि हमें एक दूसरे की जरूरत हमेशा रहेगी और हम अधूरे ही रहेंगे। यहां तक कि जिस जिस चुंबन में हमने अपने आप को पूरा समेट कर एक दूसरे में उड़ेल दिया, वहीं वहीं हमें अपने विकलांगता का एहसास हुआ। xxx कोई मां बाहर अपने बच्चे को मार रही है। बच्चा ज़ोर ज़ोर से किकियाए जा रहा है। मां गुस्से में उसे और धुन देती है। बच्चे
I do not expect any level of decency from a brat like you..
padh lete agar dikh jata to
ReplyDeleteदिल भर आता है, कुछ कहना चाहती हूँ पर बात कहीं मन में डबडबा रही है, लहरों पर हिचकोले खाती नाव जैसी...
ReplyDeleteक्या लिखते हो, कैसे लिखते हो...
मुझे भी कल भरने की जल्दी नहीं, आज में डूबने की व्यग्रता है। यह भाषा बनी रहने दें, पीढ़ियों के काम आयेगी।
ReplyDeleteपहले फेसबुक, बज्ज़ और अब सोचालय पर भी... आपकी कलम है कि तलवार... क़त्ल-ए-आम मचा रखा है आजकल... ख़ुदा ख़ैर करे !!
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeletekis khwahish se ubarker kya kya soch liya ...
ReplyDeleteबात इन पंक्तियों से बहुत परे और गहरे होने का इशारा करती हैं.बहुत बढ़िया.अब इसे क्यों न यहाँ टाइप कर लिया जाए?
ReplyDeleteकौन कहता है यह एक खूबसूरत कविता नहीं है?
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